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पु॒ना॒न इ॑न्द॒वा भ॑र॒ सोम॑ द्वि॒बर्ह॑सं र॒यिम् । त्वं वसू॑नि पुष्यसि॒ विश्वा॑नि दा॒शुषो॑ गृ॒हे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

punāna indav ā bhara soma dvibarhasaṁ rayim | tvaṁ vasūni puṣyasi viśvāni dāśuṣo gṛhe ||

पद पाठ

पु॒ना॒नः । इ॒न्दो॒ इति॑ । आ । भ॒र॒ । सोम॑ । द्वि॒ऽबर्ह॑सम् । र॒यिम् । त्वम् । वसू॑नि । पु॒ष्य॒सि॒ । विश्वा॑नि । दा॒शुषः॑ । गृ॒हे ॥ ९.१००.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:100» मन्त्र:2 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप (सोम) सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (पुनानः) सबको पवित्र करते हुए आप (द्विबर्हसं) दोनों लोकों मे बढ़नेवाले (रयिं) धन से (आभर) आप हमको परिपूर्ण करें और (त्वं) आप (दाशुषो गृहे) यज्ञशील दानी पुरुष के घर में (विश्वानि, वसूनि) सब धनों को (पुष्यसि) पुष्ट करते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष आत्मा और पर में सुखः-दुखादि को समान समझकर परोपकार करते हैं, परमात्मा उनको उन्नतिशील करता है ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे परमात्मन् ! (सोम) सर्वोत्पादक ! (पुनानः) सर्वान् पावयन् भवान् (द्विबर्हसं) द्यावापृथिव्योर्वर्धितं (रयिं) धनं (आ भर) परिपूरयतु (त्वं) भवान् (दाशुषो गृहे) यज्ञशीलस्य दातुर्गृहे (विश्वानि, वसूनि) सर्वाणि रत्नानि (पुष्यसि) भरति ॥२॥