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आ नू॒नं या॑तमश्विना॒ रथे॑न॒ सूर्य॑त्वचा । भुजी॒ हिर॑ण्यपेशसा॒ कवी॒ गम्भी॑रचेतसा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā nūnaṁ yātam aśvinā rathena sūryatvacā | bhujī hiraṇyapeśasā kavī gambhīracetasā ||

पद पाठ

आ । नू॒नम् । या॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । रथे॑न । सूर्य॑ऽत्वचा । भुजी॒ इति॑ । हिर॑ण्यऽपेशसा । कवी॒ इति॑ । गम्भी॑रऽचेतसा ॥ ८.८.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:8» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (भुजी) हे दीनों को अन्नादिकों से तृप्त करनेवालो और हे प्रजाओं के रक्षको (हिरण्यपेशसा) हे सुवर्णालङ्कारभूषितो ! (कवी) हे महाकवियो ! (गम्भीरचेतसा) हे प्रशस्तविज्ञानो (अश्विना) राजा सचिवो ! आप दोनों (सूर्य्यत्वचा) सूर्य्यवत् प्रकाशमान (रथेन) रमणीय शकट से (नूनम्) अवश्य ही (आ+यातम्) हमारे साहाय्यार्थ आवें ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो प्रजाओं के पालन में सदा तत्पर, व्यवहारशास्त्रतत्त्ववित् और परमोदार होते हैं, वे ही प्रजाओं में माननीय और पूज्य होते हैं ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (भुजी) हे उत्कृष्ट पदार्थों के भाग करनेवाले (हिरण्यपेशसा) हिरण्यभूषित (कवी) सूक्ष्मपदार्थों के जाननेवाले (गम्भीरचेतसा) गम्भीरबुद्धिवाले (अश्विना) व्यापक आप (सूर्यत्वचा) सूर्यसदृश आस्तरणवाले (रथेन) रथ द्वारा (नूनम्) निश्चय (आयातम्) आवें ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष की प्रशंसा करते हुए उनका आह्वान कथन किया है कि हे सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! आप कवी=प्रकृति के कार्य्यजात सूक्ष्मपदार्थों के ज्ञाता, बुद्धिमान् और विस्तृत ऐश्वर्य्यवाले हैं। कृपा करके हमारे यज्ञ को प्राप्त होकर अपने उपदेश द्वारा हमें भी उक्तगुणसम्पन्न करें ॥२॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे भुजी=भुज पालनाभ्यवहारयोः। यौ दीनान् भोजयतः सर्वाः प्रजाः पालयतश्च तौ भुजी=दीनानां भोजयितारौ प्रजानां पालयितारौ च तत्सम्बोधने। पुनः। हे हिरण्यपेशसा=हिरण्यानि सौवर्णानि पेशांसि भूषणानि ययोस्तौ हिरण्यपेशसौ=हे कनकालङ्कारौ। हे कवी=महाविद्वांसौ। हे गम्भीरचेतसा= गम्भीरचेतसौ= गम्भीरज्ञानौ। हे अश्विना=अश्विनौ= अश्वयुक्तौ राजसचिवौ। युवाम्। सूर्य्यत्वचा=सूर्य्यवद् दीप्यमानेन। रथेन=रमणीयशकटेन। नूनमवश्यम्। अस्मान् आयातमागच्छतं साहाय्यार्थम् ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (भुजी) हे उत्कृष्टपदार्थानां भोक्तारौ (हिरण्यपेशसा) हिरण्यभूषितौ (कवी) सूक्ष्मज्ञौ (गम्भीरचेतसा) गम्भीरबुद्धी (अश्विना) व्यापकौ ! (सूर्यत्वचा) सूर्यसदृशास्तरणेन (रथेन) वाहनेन (नूनम्) निश्चयम् (आयातम्) आगच्छतम् ॥२॥