वांछित मन्त्र चुनें

पु॒रु॒म॒न्द्रा पु॑रू॒वसू॑ मनो॒तरा॑ रयी॒णाम् । स्तोमं॑ मे अ॒श्विना॑वि॒मम॒भि वह्नी॑ अनूषाताम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

purumandrā purūvasū manotarā rayīṇām | stomam me aśvināv imam abhi vahnī anūṣātām ||

पद पाठ

पु॒रु॒ऽम॒न्द्रा । पु॒रु॒वसू॒ इति॑ पु॒रु॒ऽवसू॑ । म॒नो॒तरा॑ । र॒यी॒णाम् । स्तोम॑म् । मे॒ । अ॒श्विनौ॑ । इ॒मम् । अ॒भि । वह्नी॒ इति॑ । अ॒नू॒षा॒ता॒म् ॥ ८.८.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:8» मन्त्र:12 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:12


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

विशेषणों से राजगुण दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुमन्द्रा) मनुष्यों को आनन्दयिता यद्वा बहुतों को आनन्द देनेवाले यद्वा बहुहर्षसंयुक्त (पुरूवसू) मनुष्यधन या मनुष्यों में वास करनेहारे या बहुधन या बहुतों को वास देनेवाले (रयीणाम्) सर्व पदार्थों और प्राणियों के (मनोतरा) मनोविज्ञानी या मननकर्त्ता और (वह्नी) प्रजाओं के सुखों के वाहक (अश्विनौ) अश्वयुक्त राजा और अमात्य (मे) मेरा (स्तोमम्) स्तोत्र (अनूषाताम्) सुनें ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जो सज्जनों को आह्लादित करता, पण्डितों को मानता, दरिद्रों को धनों से पोसता और प्राणियों के मन को जानता, इस प्रकार सबको सुखी करता, वही राजा राज्ययोग्य है ॥१२॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुमन्द्रा) हे अति आनन्दवाले (पुरूवसू) अति धनवाले (रयीणाम्) धनों के (मनोतरा) अत्यन्त ज्ञानवाले (अश्विनौ) व्यापक शक्तिवाले (वह्नी) जगत् के वोढा ! आप (इमं, मे, स्तोमम्) इस मेरे स्तोत्र को (अभ्यनूषाताम्) प्रशंसनीय करें ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! आप आनन्दयुक्त, बहुधनों के स्वामी तथा धनोपार्जन की विद्या जाननेवाले, सर्वपूज्य=सत्कारार्ह हैं, हे भगवन् ! हमारे इस स्तुतिप्रद वाक्यों को श्रवण करते हुए हमारे यज्ञ में आकर इसको सफलीभूत करें ॥१२॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

विशेषणै राजगुणान् दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - पुरुमन्द्रा=पुरूणां मनुष्याणां मन्दितारौ आनन्दयितारौ। पुरुरिति मनुष्यनाम। यद्वा। बहु मादयितारौ। पुरूवसू=पुरवो मनुष्या एव वसूनि धनानि ययोस्तौ। मनुष्यरक्षायां नियुक्तत्वादित्यर्थः। यद्वा। यो पुरुषु=मनुष्येषु वसतः। यद्वा। बहुधनौ=बहूनां वासकौ वा। तथा। रयीणाम्=धनानां सर्वेषां पदार्थानां वा। मनोतरा=मननकर्तारौ मनोविज्ञानिनौ वा। तथा। वह्नी=प्रजानां सुखस्य वोढारौ। अश्विनौ=राजामात्यौ। मे=मम। स्तोमम्। अभि=अनूषाताम्। शृणुतम्। धातोरनेकार्थत्वादत्र नुवतिः श्रवणे ॥१२॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुमन्द्रा) हे बह्वानन्दौ (पुरूवसू) बहुधनौ (रयीणाम्) धनानां (मनोतरा) ज्ञातृतमौ (अश्विनौ) व्यापकौ (वह्नी) जगतो वोढारौ ! युवां (इमं, मे, स्तोमम्) इमं मे स्तोत्रम् (अभ्यनूषाताम्) प्रशंसनीयं कुरुतम् ॥१२॥