पु॒रो॒ळाशं॑ नो॒ अन्ध॑स॒ इन्द्र॑ स॒हस्र॒मा भ॑र । श॒ता च॑ शूर॒ गोना॑म् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
puroḻāśaṁ no andhasa indra sahasram ā bhara | śatā ca śūra gonām ||
पद पाठ
पु॒रो॒ळाश॑म् । नः॒ । अन्ध॑सः । इन्द्र॑ । स॒हस्र॑म् । आ । भ॒र॒ । श॒ता । च॒ । शू॒र॒ । गोना॑म् ॥ ८.७८.१
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:78» मन्त्र:1
| अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:31» मन्त्र:1
| मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:1
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (ते) तुमने (एता) मनुष्यों की इन व्यवहारसम्बन्धी वस्तुओं को (च्यौत्नानि) सुदृढ़ और नियमों से सुबद्ध (कृता) किया है (वर्षिष्ठानि) अतिशय उन्नत किया है और (परीणसा) और जो अनम्र दुष्कर और कठिन काम थे, उनको नम्र सुकर और ऋजु कर दिया है, क्योंकि तुम (हृदा) हृदय से (वीळु) स्थिर करके (अधारयः) उनको रखते हो अर्थात् यह अवश्यकर्त्तव्य है, ऐसा मन में स्थिर करके रखते हो ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो राजा मन में दृढ़ संकल्प रखता है, वह उत्तमोत्तम कार्य्य करके दिखलाता है ॥९॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! ते=त्वया। एता=एतानि=मनुष्याणां व्यावहारिकाणि वस्तूनि। च्यौत्नानि=सुदृढानि नियमसुबद्धानि। कृता=कृतानि। वर्षिष्ठानि=अतिशयेन प्रवृद्धानि कृतानि। पुनः। परीणसा=परितो न तानि कृतानि। यतस्त्वम्। हृदा। वीळु=स्थिराणि। अधारयः। इदमवश्यमेव कर्त्तव्यमिति हृदि धारयसि ॥९॥