ए॒ता च्यौ॒त्नानि॑ ते कृ॒ता वर्षि॑ष्ठानि॒ परी॑णसा । हृ॒दा वी॒ड्व॑धारयः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
etā cyautnāni te kṛtā varṣiṣṭhāni parīṇasā | hṛdā vīḍv adhārayaḥ ||
पद पाठ
ए॒ता । च्यौ॒त्नानि॑ । ते॒ । कृ॒ता । वर्षि॑ष्ठानि । परी॑णसा । हृ॒दा । वी॒ळु । अ॒धा॒र॒यः॒ ॥ ८.७७.९
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:77» मन्त्र:9
| अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:30» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:9
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - जो (इन्द्रः) महाराज (स्वाततम्) अतिविस्तृत (बुन्दम्) बाण आदि आयुधों को हाथ में लेकर (गिरिभ्यः) अतिशय सघन पर्वतों, वनों और ईदृग् अन्यान्य स्थानों से छिपे हुए चोर-डाकू आदि दुष्टों को (निरविध्यत्) निकाल बाहर करता रहता है और प्रजा के लिये (पक्वम्+ओदनम्) पके भात रोटी आदि भोज्य पदार्थ सदा (आधारयत्) प्रस्तुत रहते हैं, वे ही प्रजाओं में विख्यात होते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - गिरि=यह शब्द उपलक्षक है। बहुत से दुष्ट पर्वतादि अगम्य स्थान में जा छिपते हैं, वहाँ भी उन्हें न रहने देवें और जब-जब प्रजाओं में अन्न की विकलता होवे, तब-तब राजा उसका पूरा प्रबन्ध करे ॥६॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - य इन्द्रो राजा। स्वाततम्=सुष्ठु सर्वत आततं=विस्तृतम्। बुन्दम्=इषुम्। आदायेति शेषः। गिरिभ्योऽपि= अतिशयसघनवनप्रभृतिस्थानेभ्योऽपि। गुप्तान् चोरादीन्। निरविध्यद्=निःसारयति। तथा प्रजाहितार्थम्। पक्वमोदनम्। आधारयत्=सदा बिभर्ति। स हि प्रशंसनीयो भवति ॥६॥