तं ने॒मिमृ॒भवो॑ य॒था न॑मस्व॒ सहू॑तिभिः । नेदी॑यो य॒ज्ञम॑ङ्गिरः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
taṁ nemim ṛbhavo yathā namasva sahūtibhiḥ | nedīyo yajñam aṅgiraḥ ||
पद पाठ
तम् । ने॒मिम् । ऋ॒भवः॑ । य॒था॒ । आ । न॒म॒स्व॒ । सहू॑तिऽभिः । नेदी॑यः । य॒ज्ञम् । अ॒ङ्गि॒रः॒ ॥ ८.७५.५
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:75» मन्त्र:5
| अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:24» मन्त्र:5
| मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:5
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शिव शंकर शर्मा
अग्निनाम से ईश्वर की स्तुति कहते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और भी (देव) हे देव=ईश ! (देवान्) तेरी आज्ञा पर चलने के कारण शोभन कर्मवान् और (विदुष्टरः) जगत् के तत्त्वों को जाननेवाले (नः) हम उपासकों को (अच्छ) अभिमुख होकर (वाचः) उपदेश दे और (विश्वा) समस्त (वार्य्या) वरणीय ज्ञानों और धनों को (श्रद्+कृधि) सत्य बना ॥२॥
भावार्थभाषाः - भगवान् हमारे हृदयप्रदेश में उपदेश देता है और इस जगत् के प्रत्येक पदार्थ भी मनुष्यों को सदुपदेश दे रहे हैं, परन्तु इस तत्त्व को विरले ही विद्वान् समझते हैं। हे मनुष्यों ! इसकी शरण में आकर इस जगत् का अध्ययन करो ॥२॥
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शिव शंकर शर्मा
अग्निनाम्नेश्वरस्य स्तुतिः।
पदार्थान्वयभाषाः - उत=अपि च। हे देव ! देवान्=शोभनकर्मवतः। विदुष्टरः=अतिशयेन विदुषः। नोऽस्मान्। अच्छ=अभिमुखं यथा तथा। वोचः=उपदिश। तथा विश्वा=सर्वाणि। वार्य्या=वरणीयानि ज्ञानानि। श्रत्=सत्यानि। कृधि=विधेहि ॥२॥