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अ॒न्तरि॑च्छन्ति॒ तं जने॑ रु॒द्रं प॒रो म॑नी॒षया॑ । गृ॒भ्णन्ति॑ जि॒ह्वया॑ स॒सम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

antar icchanti taṁ jane rudram paro manīṣayā | gṛbhṇanti jihvayā sasam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒न्तः । इ॒च्छ॒न्ति॒ । तम् । जने॑ । रु॒द्रम् । प॒रः । म॒नी॒षया॑ । गृ॒भ्णन्ति॑ । जि॒ह्वया॑ । स॒सम् ॥ ८.७२.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:72» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:14» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:3


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हम उपासकगण (नः) अपने (द्वेषः) द्वेषियों को (योतवै) दूर करने के लिये (अग्निम्) परमात्मा से (गृणीमसि) प्रार्थना करते हैं और (शम्+योः+च) सुख के मिश्रण को (दातवे) देने के लिये ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। जो परमात्मा (विश्वासु) समस्त (विक्षु) प्रजाओं में (अविता इव) रक्षकरूप से स्थित है और जो (ऋषूणाम्) ऋषियों का (हव्यः) स्तुत्य है और (वस्तुः) वास देनेवाला (भुवत्) है ॥१५॥
भावार्थभाषाः - किसी के साथ हम द्वेष न करें, जहाँ तक हो, जगत् में सुख पहुँचावें और उस ईश्वर की स्तुति प्रार्थना करें, जो सबका अधीश्वर है ॥१५॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - नोऽस्माकम्। द्वेषः=द्वेष्टॄन् जनान्। योतवै=पृथक्कर्तुम्। अग्निं+गृणीमसि=गृणीमः=स्तुमः। शं=सुखम्। योः= भयानाममिश्रञ्च। दातवे=दातुम्। अथवा। शं=सुखस्य। योः+मिश्रणाय च। गृणीमसि। सोऽग्निर्विश्वासु सर्वासु। विक्षु=प्रजास्ववितेव रक्षिता राजेवर्षूणामृषीणामस्माकं वस्तुर्वासको देवो हव्यो भुवत्=भवतु। अथवा सर्वासु विक्षु यजमानरूपासु प्रजासु मध्य ऋषूणामृषीणां सूक्तद्रष्टॄणामस्माकमेव हव्यो भवतु वस्तुः सर्वस्य वासको देवः ॥१५॥