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न॒हि म॒न्युः पौरु॑षेय॒ ईशे॒ हि व॑: प्रियजात । त्वमिद॑सि॒ क्षपा॑वान् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nahi manyuḥ pauruṣeya īśe hi vaḥ priyajāta | tvam id asi kṣapāvān ||

पद पाठ

न॒हि । म॒न्युः । पौरु॑षेयः । ईशे॑ । हि । वः॒ । प्रि॒य॒ऽजा॒त॒ । त्वम् । इत् । अ॒सि॒ । क्षपा॑ऽवान् ॥ ८.७१.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:71» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:11» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:2


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (समह) हे सर्वपूज्य जगदीश ! तू (बर्हिष्मद्भिः) सर्वसाधनसम्पन्न (भूरिभिः+ऋषिभिः) बहुत ऋषियों से (स्तविष्यसे) पूजित होता है। (शर) हे विघ्नविनाशक ! (यद्) जो तू (इत्थम्) इस प्रकार (एकमेकम्+इत्) एक-एक करके (वत्सान्) बहुत वत्स सत्पुरुषों को (पराददः) दिया करता है ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इसका आशय यह है कि उसकी पूजा जब महा महर्षि करते हैं, तब हम क्यों न करें और जब देखते हैं कि जो उपासक हैं, उनको क्रमशः धन की वृद्धि होती है। परमात्मा एक-एक देकर उसको लाख दे देता है, अतः वही चिन्तनीय है ॥१४॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे समह=सर्वपूज्य इन्द्र ! त्वम्। बर्हिष्मद्भिः= सर्वसाधनसम्पन्नैः। भूरिभिः=बहुभिः। ऋषिभिः। स्तविष्यसे=स्तूयसे। हे शर ! यद् यस्त्वम्=इत्थमनेन प्रकारेण। एकमेकमित्=एकमेकमेव। वत्सान्=बहून् वत्सात्। पराददः। सद्भ्यः प्रयच्छसि ॥१४॥