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अच्छा॑ नः शी॒रशो॑चिषं॒ गिरो॑ यन्तु दर्श॒तम् । अच्छा॑ य॒ज्ञासो॒ नम॑सा पुरू॒वसुं॑ पुरुप्रश॒स्तमू॒तये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

acchā naḥ śīraśociṣaṁ giro yantu darśatam | acchā yajñāso namasā purūvasum purupraśastam ūtaye ||

पद पाठ

अच्छ॑ । नः॒ । शी॒रऽशो॑चिषम् । गिरः॑ । य॒न्तु॒ । द॒र्श॒तम् । अच्छ॑ । य॒ज्ञासः॑ । नम॑सा । पु॒रु॒ऽवसु॑म् । पु॒रु॒ऽप्र॒श॒स्तम् । ऊ॒तये॑ ॥ ८.७१.१०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:71» मन्त्र:10 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:12» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:10


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे ईश ! (नः) हमारी (उरुष्य) रक्षा कर और (जातवेदः) हे सर्वज्ञ सर्वसम्पत्ते ! (अघायते) जो सदा पाप किया करता है और दूसरों की अनिष्ट चिन्ता में रहता है, ऐसे पुरुष के निकट (मा+परा+दाः) हमको मत ले जा। तथा (दुराध्ये) जिसकी बुद्धि परद्रोह के कारण विकृत हो गई है, जो दूसरों के अमङ्गल का ही ध्यान करता है, (मर्ताय) ऐसे पापिष्ठ के निकट भी हमको मत ले जा ॥७॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य को उचित है कि अपनी ही जाति के अशुभ करने में न लगा रहे और सदा अनिष्टचिन्तन से अपने मन को दूषित न करे, अन्यथा महती हानि होगी ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे ईश ! नोऽस्मान्। उरुष्य=पालय। हे जातवेदः=सर्वज्ञ ! अघायते=योऽघं पापं करोति तस्मै। मा+परा+दाः=समर्पय। पुनः। दुराध्ये=दुष्टमनसे कपटिने मर्ताय च न परादाः ॥७॥