ओ षु वृष्ण॒: प्रय॑ज्यू॒ना नव्य॑से सुवि॒ताय॑ । व॒वृ॒त्यां चि॒त्रवा॑जान् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
o ṣu vṛṣṇaḥ prayajyūn ā navyase suvitāya | vavṛtyāṁ citravājān ||
पद पाठ
ओ इति॑ । सु । वृष्णः॑ । प्रऽय॑ज्यून् । आ । नव्य॑से । सु॒वि॒ताय॑ । व॒वृ॒त्याम् । चि॒त्रऽवा॑जान् ॥ ८.७.३३
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:33
| अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:24» मन्त्र:3
| मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:33
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शिव शंकर शर्मा
वशीभूत प्राणों का फल दिखलाते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - जब ये प्राण विषयों से निवृत्त हो जाते हैं, उस अवस्था में (वृष्णः) वे निखिल कामों को देनेवाले होते हैं और (प्रयजून्) समाधि में लगे रहते हैं और (चित्रवाजान्) उनमें विचित्र प्रकार का ज्ञान-विज्ञान प्राप्त होने लगते हैं। ऐसे प्राणों के (नव्यसे) नूतन-२ (सुविताय) ज्ञानधन के लिये (आ+उ+सु+ववृत्याम्) प्रार्थना करता हूँ ॥३३॥
भावार्थभाषाः - समाधिसिद्ध प्राणों के द्वारा मनुष्य हितकारी ज्ञान प्राप्त कर जगत् में फैलावे ॥३३॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वृष्णः) कामनाओं की वर्षा करनेवाले (प्रयज्यून्) अतिशय पूज्य (चित्रवाजान्) अद्भुत बलवाले योद्धाओं को (नव्यसे, सुविताय) नित्य नूतन धनप्राप्ति के लिये (आ, उ) अपने अभिमुख (आववृत्याम्) मैं आवर्तित करूँ ॥३३॥
भावार्थभाषाः - जो सम्राट् न्यायशील तथा धर्मपरायण है, उसको परमात्मा कामनाओं की वर्षा करनेवाले, अद्भुत बलवाले तथा सदा निर्भीक योद्धाओं को प्रदान करता है ॥३३॥
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शिव शंकर शर्मा
वशीकृतप्राणफलं दर्शयति।
पदार्थान्वयभाषाः - विषयनिवृत्तत्वात्। वृष्णः=कामानां वर्षितॄन्। प्रयजून्=प्रकृष्टे समाधियागे आसक्तान्। चित्रवाजान्=आश्चर्य्यविज्ञान्। तान् प्राणान्। नव्यसे=समाधिजाय अतएव नूतनाय-२। सुविताय=सुष्ठु प्राप्तव्याय ज्ञानधनाय। सु+आ+उ+ ववृत्याम्=आवर्त्तयामि=प्रार्थयामि ॥३३॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वृष्णः) कामानां वर्षितॄन् (प्रयज्यून्) प्रयष्टव्यान् (चित्रवाजान्) विचित्रबलान् मरुतः (नव्यसे, सुविताय) नूतनधनप्राप्तये (आ, उ) अभिमुखम् (आववृत्याम्) आवर्तयानि ॥३३॥