कद्ध॑ नू॒नं क॑धप्रियो॒ यदिन्द्र॒मज॑हातन । को व॑: सखि॒त्व ओ॑हते ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
kad dha nūnaṁ kadhapriyo yad indram ajahātana | ko vaḥ sakhitva ohate ||
पद पाठ
कत् । ह॒ । नू॒नम् । क॒ध॒ऽप्रि॒यः॒ । यत् । इन्द्र॑म् । अज॑हातन । कः । वः॒ । स॒खि॒ऽत्वे । ओ॒ह॒ते॒ ॥ ८.७.३१
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:31
| अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:24» मन्त्र:1
| मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:31
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शिव शंकर शर्मा
प्राणों की चञ्चलता दिखलाते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (कधप्रियः) हे कथाओं के प्रेमी प्राणो ! आप (इन्द्रम्) आत्मा को (नूनम्) सत्य है कि (अजहातन) छोड़ देते हैं (यत्) जो यह बात है, सो (कद्ध) कब ऐसा हुआ, कभी नहीं, प्राण आत्मा को कदापि नहीं छोड़ते। हे प्राणो ! (वः) आपकी (सखित्वे) मित्रता को (कः) कौन (ओहते) पाते हैं ॥३१॥
भावार्थभाषाः - यद्यपि आत्मा को इन्द्रियगण त्यागते नहीं, तथापि इनको विवश करना अति कठिन है। जो सदा विषय से विमुख होकर ईश्वर की ओर जाते हैं, वे ही इनको पा सकते हैं ॥३१॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (कधप्रियः) हे प्राचीनकथाओं में प्रेम रखनेवाले ! आप वह समय (कद्ध) कौन है (यद्) जब आप (इन्द्रम्) अपने सम्राट् को (अजहातन, नूनम्) निश्चय छोड़ देते हो (वः, सखित्वे) और आपके मैत्रीभाव की (कः, ओहते) कौन याचना कर सकता है ॥३१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में यह भाव वर्णन किया है कि उत्तम योद्धा वे हैं, जो कठिन से कठिन आपत्काल प्राप्त होने पर भी अपने सम्राट् का साथ नहीं छोड़ते अर्थात् विपत्तिकाल में भी जीवन की आशा न करते हुए राष्ट्र की रक्षा करते हैं ॥३१॥
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शिव शंकर शर्मा
प्राणचञ्चलत्वं दर्शयति।
पदार्थान्वयभाषाः - हे कधप्रियः=हे कथाप्रियः=कथया प्रीयमाणाः प्राणाः। इन्द्रमात्मानम्। नूनम्=सत्यम्। अजहातन=जहीथ त्यजथ। यदेतत्। तत् कद्ध=कदा जातम्। न कदापीत्यर्थः। यूयं न कदापीन्द्रं त्यजथ। वः=युष्माकम्। सखित्वे=सखित्वम्। कः स्तोता। ओहते=याचते=प्राप्नोति ॥३१॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (कधप्रियः) हे प्रियबोद्धृकथाः ! सोऽवसरः (कद्ध) कदा भवति (यद्) यदा (इन्द्रम्) स्वसम्राजम् (नूनम्, अजहातन) निश्चयं त्यजेत, यूयम् (वः, सखित्वे) युष्माकं मैत्रीविषये (कः, ओहते) कः याचते, दुर्लभा तव मैत्रीति भावः ॥३१॥