अधी॑व॒ यद्गि॑री॒णां यामं॑ शुभ्रा॒ अचि॑ध्वम् । सु॒वा॒नैर्म॑न्दध्व॒ इन्दु॑भिः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
adhīva yad girīṇāṁ yāmaṁ śubhrā acidhvam | suvānair mandadhva indubhiḥ ||
पद पाठ
अधि॑ऽइव । यत् । गि॒री॒णाम् । याम॑म् । शु॒भ्राः॒ । अचि॑ध्वम् । सु॒वा॒नैः । म॒न्द॒ध्वे॒ । इन्दु॑ऽभिः ॥ ८.७.१४
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:14
| अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:14
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शिव शंकर शर्मा
ईश्वरज्ञान का फल दिखलाते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (शुभ्राः) हे प्राणायामों से शोधित अतएव पवित्र इन्द्रियो ! आप (यद्) जब (गिरीणाम्) शिर के (अधीव) ऊपर स्थित होकर (यामम्) जगन्नियन्ता ईश्वर को (अचिध्वम्) जान लेते हो, तब (सुवानैः) चारों ओर से बरसते हुए (इन्दुभिः) आह्लादों के साथ (मन्दध्वे) आनन्दित होते हैं ॥१४॥
भावार्थभाषाः - ये इन्द्रियगण जब प्राणायाम से शुभ्र, पवित्र और शोधित होते हैं, तब ही ईश्वर को जानने लगते हैं और विविध आनन्द पाते हैं ॥१४॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (शुभ्राः) हे शोभन योद्धाओ ! (यद्) जब आप (गिरीणाम्, अधीव) पर्वतों के मध्यभाग के समान (यामम्) यान को (अचिध्वम्) इकट्ठा करते हैं, तब (सुवानैः, इन्दुभिः) अनेक दिव्य पदार्थों को उत्पन्न करते हुए (मन्दध्वे) सब प्रजाओं को हर्षित कर देते हैं ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि स्वेच्छाचारी योद्धाओं के लिये जल स्थल सब एक प्रकार के हो जाते हैं और वे गिरिशिखरों के ऊपर विना रोक-टोक विचरते हैं ॥१४॥
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शिव शंकर शर्मा
ईश्वरज्ञानफलं दर्शयति।
पदार्थान्वयभाषाः - हे शुभ्राः=प्राणायामैः शोधिताः पवित्रा मरुतः। यूयम्। यद्=यदा। गिरीणाम्=शिरसः। अधीव=उपरीव=शिरस उपरि स्थित्वा। यामम्=जगन्नियन्तारमीश्वरम्। अचिध्वम्। चिनुध्वे=जानीध्वे। तदा। सुवानैः=अभिषूयमाणैः। इन्दुभिः=आह्लादैरानन्दैः। मन्दध्वे=आनन्दथ ॥१४॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (शुभ्राः) हे शोभनाः ! (यद्) यदा (गिरीणाम्, अधीव) पर्वतानामुपरीव (यामम्) यानम् (अचिध्वम्) चिनुथ तदा (सुवानैः, इन्दुभिः) उत्पाद्यमानैर्दिव्यपदार्थैः (मन्दध्वे) सर्वान्मादयध्वे ॥१४॥