यू॒यं हि ष्ठा सु॑दानवो॒ रुद्रा॑ ऋभुक्षणो॒ दमे॑ । उ॒त प्रचे॑तसो॒ मदे॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
yūyaṁ hi ṣṭhā sudānavo rudrā ṛbhukṣaṇo dame | uta pracetaso made ||
पद पाठ
यू॒यम् । हि । स्थ । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । रुद्राः॑ । ऋ॒भु॒क्ष॒णः॒ । दमे॑ । उ॒त । प्रऽचे॑तसः । मदे॑ ॥ ८.७.१२
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:12
| अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:2
| मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:12
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शिव शंकर शर्मा
प्राणस्तुति कहते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और हे प्राणो ! (यूयम्+हि) निश्चय आप (दमे) इस शरीररूपी गृह में स्थित होकर (सुदानवः) सुन्दर दान देनेवाले (रुद्राः) पापों को रुलानेवाले होते हैं और (ऋभुक्षणः) महान् हैं (मदे) ब्रह्मानन्द में स्थित होकर (प्रचेतसः) परमज्ञानी होते हैं ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जो कोई प्राणों अर्थात् इन्द्रियों को सदा शुभ कर्म में लगाते हैं, वे किन सुखों को न पाते और वे इस जगत् में महान् होते हैं। अतः हे मनुष्यों ! इनको अच्छे प्रकार जान और जितेन्द्रिय पुरुषों का आख्यान पढ़ अपने जीव को सफल बनाओ ॥१२॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (यूयम्) आप (सुदानवः) सुन्दर दानशील (हि, स्थ) हैं (रुद्राः) दुष्टों को रुलानेवाले (दमे, ऋभुक्षिणः) दमन के विषय में अति तेजस्वी (उत) और (मदे) प्रजाओं को हर्षित करने में (प्रचेतसः) जागरूक हैं ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष दमन करने की शक्ति रखते हैं, वे ही उत्पाती, साहसी, लोगों का दमन करके प्रजा में शान्ति उत्पन्न कर सकते हैं, इसलिये ऐसे तेजस्वी पुरुषों की प्राप्ति के लिये परमात्मा से अवश्य प्रार्थना करनी चाहिये ॥१२॥
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शिव शंकर शर्मा
प्राणाः स्तूयन्ते।
पदार्थान्वयभाषाः - उत=अपि च। हे प्राणाः ! यूयं हि। सुदानवः=शोभनदातारः। रुद्राः=पापानां रोदयितारः। ऋभुक्षणः=महान्तः। दमे=शरीरगृहे। स्थ। यूयं हि। मदे=ब्रह्मानन्दे। प्रचेतस=प्रकृष्टज्ञाना भवथ ॥१२॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - कुतः (यूयम्, सुदानवः, हि, स्थ) यूयं शोभनदाना एव स्थ (रुद्राः) खलानां रोदयिता (दमे, ऋभुक्षिणः) दमनशक्तौ तेजस्विनः (उत) अथ (मदे) हर्षे प्रजानां (प्रचेतसः) जागरूकश्च स्थ ॥१२॥