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देवता: इन्द्र: ऋषि: प्रियमेधः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

यस्य॑ ते महि॒ना म॒हः परि॑ ज्मा॒यन्त॑मी॒यतु॑: । हस्ता॒ वज्रं॑ हिर॒ण्यय॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasya te mahinā mahaḥ pari jmāyantam īyatuḥ | hastā vajraṁ hiraṇyayam ||

पद पाठ

यस्य॑ । ते॒ । म॒हि॒ना । म॒हः । परि॑ । ज्मा॒यन्त॑म् । ई॒यतुः॑ । हस्ता॑ । वज्र॑म् । हि॒र॒ण्यय॑म् ॥ ८.६८.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:68» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:1» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:3


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यासः) हे राज्यप्रबन्धकर्त्ताओ (विष्वग्) सब प्रकार से और सब दिशाओं से आप सब मिलकर (द्वेषः) द्वेषियों को (सु) अच्छे प्रकार (वि+बृहत) मूल से उखाड़ नष्ट कीजिये (अंहतिम्) पापों को (वि) हमसे दूर फेंक दीजिये (संहितम्) सम्मिलित आक्रमण को (वि) रोका कीजिये तथा (रपः+वि) रोग, शोक, अविद्या आदि पापों को विनष्ट कीजिये। यह अन्तिम विनय आपसे है ॥२१॥
भावार्थभाषाः - राज्य की ओर से बड़े-बड़े विवेकी विद्वानों को देश की दशाओं के निरीक्षण के लिये नियुक्त करो और उनके कथनानुसार राज्यप्रबन्ध करो, तब निखिल उपद्रव शान्त रहेंगे ॥२१॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे आदित्यासः=हे आदित्याः ! विष्वग्=सर्वतः सर्वाभ्यो दिग्भ्यः। द्वेषः=द्वेष्टॄन्। सु=सुष्ठु। विबृहत=यूयमुन्मूलयत। अंहतिम्=पापम्। विबृहत। संहितम्= सम्मिलितमाक्रमणञ्च विबृहत। तथा रपः=रोगादि चित्तमालिन्यादिकञ्च। विबृहत ॥२१॥