देवता: आदित्याः
ऋषि: मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः
छन्द: निचृद्गायत्री
स्वर: षड्जः
मा नो॑ मृ॒चा रि॑पू॒णां वृ॑जि॒नाना॑मविष्यवः । देवा॑ अ॒भि प्र मृ॑क्षत ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
mā no mṛcā ripūṇāṁ vṛjinānām aviṣyavaḥ | devā abhi pra mṛkṣata ||
पद पाठ
मा । नः॒ । मृ॒चा । रि॒पू॒णाम् । वृ॒जि॒नाना॑म् । अ॒वि॒ष्य॒वः॒ । देवाः॑ । अ॒भि । प्र । मृ॒क्ष॒त॒ ॥ ८.६७.९
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:67» मन्त्र:9
| अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:52» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:9
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे राज्यसभासदों प्रबन्धकर्तारो ! (श्रान्ताय) अति परिश्रमी, उद्योगी और साहसी और (सुन्वते) सदा शुभकर्म में निरत जनों के लिये (वः) आप लोगों का (यद्+वरूथम्) जो दान के लिये धन साहाय्य और पुरस्कार आदि हैं और (यद्+छर्दिः) रहने के लिये बड़े-बड़े भवन और आश्रय हैं, (तेन) उन दोनों प्रकारों के उपकरणों से (नः) हम प्रजाजनों की (अधिवोचत) सहायता और रक्षा कीजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - परिश्रमी और सुकर्मी जनों को राज्य की ओर से सब सुविधा मिलनी चाहिये, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥६॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे आदित्याः ! श्रान्ताय=अतिपरिश्रमशीलाय। तथा सुन्वते=सदा शुभकर्मनिरताय जनाय च। वः=युष्माकम्। यद्+वरूथम्=दानाय धनं साहाय्यादिकञ्च वर्तते। यच्च। छर्दिः=गृहं शरणमस्ति। नः=अस्माकम्। तेन=द्वयेनापि। अधिवोचत=साहाय्यं कुरुत ॥६॥