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कस्य॑ स्वि॒त्सव॑नं॒ वृषा॑ जुजु॒ष्वाँ अव॑ गच्छति । इन्द्रं॒ क उ॑ स्वि॒दा च॑के ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kasya svit savanaṁ vṛṣā jujuṣvām̐ ava gacchati | indraṁ ka u svid ā cake ||

पद पाठ

कस्य॑ । स्वि॒त् । सव॑नम् । वृषा॑ । जु॒जु॒ष्वान् । अव॑ । ग॒च्छ॒ति॒ । इन्द्र॑म् । कः । ऊँ॒ इति॑ । स्वि॒त् । आ । च॒के॒ ॥ ८.६४.८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:64» मन्त्र:8 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:45» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:8


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! तू ही जलवर्षिता भी है, तू (स्तोतृभ्यः) स्तुतिपरायण इन समस्त प्राणियों के कल्याण के लिये (त्यम्+चित्) उस (गिरिम्) मेघ को (वि+रुरोजिथ) विविध प्रकार से छिन्न-भिन्न कर बरसाता है, जो मेघ (पर्वतम्) अनेक पर्वतों से युक्त हैं, जो (शतवन्तम्) संख्या में सैकड़ों और (सहस्रिणम्) सहस्रों हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जलवर्षणकर्ता भी वही देव है। सृष्टि की आदि में कहाँ से ये मेघ आए, इनकी उत्पत्ति किस प्रकार हुई, यदि मेघ न हो, तो जीव भी यहाँ न होते इत्यादि भावना सदा करनी चाहिये ॥५॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! त्वम्। स्तोतृभ्यः=स्तुतिकर्तृभ्यो जनेभ्यः। शतवन्तं सहस्रिणञ्च। त्यं चित्। तं पर्वतं गिरिम्। विरुरोजिथ=विरुजसि ॥५॥