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ऋ॒दू॒दरे॑ण॒ सख्या॑ सचेय॒ यो मा॒ न रिष्ये॑द्धर्यश्व पी॒तः । अ॒यं यः सोमो॒ न्यधा॑य्य॒स्मे तस्मा॒ इन्द्रं॑ प्र॒तिर॑मे॒म्यायु॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛdūdareṇa sakhyā saceya yo mā na riṣyed dharyaśva pītaḥ | ayaṁ yaḥ somo ny adhāyy asme tasmā indram pratiram emy āyuḥ ||

पद पाठ

ऋ॒दू॒दरे॑ण । सख्या॑ । स॒चे॒य॒ । यः । मा॒ । न । रिष्ये॑त् । ह॒रि॒ऽअ॒श्व॒ । पी॒तः । अ॒यम् । यः । सोमः॑ । नि । अधा॑यि । अ॒स्मे इति॑ । तस्मै॑ । इन्द्र॑म् । प्र॒ऽतिर॑म् । ए॒मि॒ । आयुः॑ ॥ ८.४८.१०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:48» मन्त्र:10 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:12» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:10


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शिव शंकर शर्मा

फिर उसी अर्थ को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सोम ! (इषिरेण+मनसा) उत्सुक मन से (ते+सुतस्य) तुझ पवित्र अन्न को हम (भक्षीमहि) भोग करें, (पित्रस्य+इव+रायः) जैसे पिता-पितामहादि से प्राप्त धन को पुत्र भोगता है। (सोम+राजन्) हे राजन् सोम ! तू (नः+आयूंषि) हमारी आयु को (प्र+तारीः) बढ़ा। पुनः दृष्टान्त (इव) जैसे (सूर्य्यः) सूर्य्य (वासराणि) वासप्रद (अहानि) दिनों को बढ़ाते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - इसका आशय विस्पष्ट है। जब तक खूब भूख न लगे, अन्न के लिये आकुलता न हो, तब तक भोजन न करे। इसी अवस्था में अन्न सुखदायी होता है और आयु बढ़ती है। सोम राजा इसलिये कहाता है कि शरीर में प्रवेश कर यहीं चमकता है और सब इन्द्रियों पर अधिकार रखता है। यदि अन्न न खाया जाए, तो सब इन्द्रियाँ शिथिल हों जाएँ और शरीर भी न रहे, अतः शरीर का शासक होने से अन्न राजा है ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सोम ! वयम्। इषिरेण=इच्छावता। मनसा। ते। सुतस्य। अत्र कर्मणि षष्ठी। त्वां सुतम्। भक्षीमहि=भक्षयेम। दृष्टान्तः। पित्र्यस्येव रायः। यथा पितुरागतं धनं वयं भक्षयामः। हे राजन् सोम ! नोऽस्माकम्। आयूंषि। प्रतारीः=प्रवर्धय। पुनर्दृष्टान्तः। वासराणि=वासयितॄणि। अहानि=दिनानीव सूर्य्यः ॥७॥