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स नो॒ वाजे॑ष्ववि॒ता पु॑रू॒वसु॑: पुरस्था॒ता म॒घवा॑ वृत्र॒हा भु॑वत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa no vājeṣv avitā purūvasuḥ purasthātā maghavā vṛtrahā bhuvat ||

पद पाठ

सः । नः॒ । वाजे॑षु । अ॒वि॒ता । पु॒रु॒ऽवसुः॑ । पु॒रः॒ऽस्था॒ता । म॒घऽवा॑ । वृ॒त्र॒ऽहा । भु॒व॒त् ॥ ८.४६.१३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:46» मन्त्र:13 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:13


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (महामह) हे महानों में महान्, हे श्रेष्ठों में श्रेष्ठ, हे परमपूज्य, हे महाधनेश्वर जगदीश ! (यथा+पुरा) पूर्ववत् (उ) इस समय भी (नः) हम उपासकों को (गव्या) गो धन देने की इच्छा से (उत) और (अश्वया) घोड़े देने की इच्छा से (रथया) रथ देने की इच्छा से (वरिवस्य) यहाँ कृपा कर आवें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर में सब पदार्थ अतिशय हैं। वह कितना महान् है, यह मनुष्य की बुद्धि में नहीं आ सकता। उसके निकट कितना धन है, उसकी न तो संख्या हो सकती और न मानवमन ही वहाँ तक पहुँच सकता है, अतः उसके साथ महान् आदि शब्द लगाए जाते हैं। इस ऋचा से यह शिक्षा होती है कि जब वह इतना महान् है, तब उसको छोड़कर दूसरों से मत माँगो। गौ, अश्व और रथ आदि पदार्थ गृहस्थाश्रम के लिये परमोपयोगी हैं, अतः इनकी प्राप्ति के लिये बहुधा प्रार्थना आती है ॥१०॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे महामह ! महतां महन् ! हे श्रेष्ठानां मध्ये श्रेष्ठ ! यथा पुरा=पूर्ववत्। नोऽस्माकम्। गव्या=गवेच्छया। उत। अश्वया=अश्वेच्छया उत। रथया=रथेच्छया। सु=सुष्ठु। वरिवस्य=परिचर=आगच्छ ॥१०॥