वि षु विश्वा॑ अभि॒युजो॒ वज्रि॒न्विष्व॒ग्यथा॑ वृह । भवा॑ नः सु॒श्रव॑स्तमः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
vi ṣu viśvā abhiyujo vajrin viṣvag yathā vṛha | bhavā naḥ suśravastamaḥ ||
पद पाठ
वि । सु । विश्वाः॑ । अ॒भि॒ऽयुजः॑ । वज्रि॑न् । विष्व॑क् । यथा॑ । वृ॒ह॒ । भव॑ । नः॒ । सु॒श्रवः॑ऽतमः ॥ ८.४५.८
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:45» मन्त्र:8
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:43» मन्त्र:3
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:8
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - स्वयं आत्मा अपने से कहता है कि हे इन्द्र ! (त्वा) तुझको (शवसी) बलवती बुद्धिरूपा माता (प्रति+वदत्) कहेगी कि (यः+ते) जो तेरे साथ (शत्रुत्वम्) शत्रुता की (आचके) आकाङ्क्षा करता है, वह (गिरौ) पर्वत के ऊपर (अप्सः+न) दर्शनीय राजा के समान (योधिषत्) युद्ध करेगा ॥५॥
भावार्थभाषाः - जब आत्मा में ईश्वर की उपासना से कुछ-कुछ बल आने लगता है, तब वह अपने को शत्रुरहित और निश्चिन्त समझने लगता है। उस समय बुद्धि कहती है कि हे आत्मन् ! आप निश्चिन्त न होवें, अभी आपके शत्रु हैं, वे आपसे युद्ध करेंगे। ईश्वर की शरण में पुनः-पुनः जाओ। उसकी उपासना स्तुति प्रार्थना मत छोड़ो ॥५॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! त्वा=त्वां प्रति। शवसी=बलवती बुद्धिरूपा माता। प्रतिवदत्=प्रतिवदति। यस्ते शत्रुत्वम्। आचके=इच्छति। सः। गिरौ=पर्वते। अप्सो न=दर्शनीयो राजा इव योधिषत्=युध्यति ॥५॥