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अग्ने॒ स्तोमं॑ जुषस्व मे॒ वर्ध॑स्वा॒नेन॒ मन्म॑ना । प्रति॑ सू॒क्तानि॑ हर्य नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne stomaṁ juṣasva me vardhasvānena manmanā | prati sūktāni harya naḥ ||

पद पाठ

अग्ने॑ । स्तोम॑म् । जु॒ष॒स्व॒ । मे॒ । वर्ध॑स्व । अ॒नेन॑ । मन्म॑ना । प्रति॑ । सु॒ऽउ॒क्तानि॑ । ह॒र्य॒ । नः॒ ॥ ८.४४.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:44» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:36» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वाधार ईश ! (विभावसुः) जिस कारण आप सबको अपने तेज से प्रकाशित करनेवाले हैं (शर्धन्) और समर्थ हैं, अतः (सः+त्वम्) वह आप (न) जैसे (रश्मिभिः) किरणों से (सृजन्) उदित होता हुआ सूर्य्य अन्धकारों को दूर करता है, तद्वत् (तमांसि) हमारे निखिल अज्ञानों को (जिघ्नसे) दूर कीजिये ॥३२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के ध्यान और पूजन से अन्तःकरण उज्ज्वल होता जाता है और वह उपासक दिन-२ पाप से छूटता जाता है ॥–३२॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! विभावसुः=सर्वेषां भासयिता तथा शर्धन्=समर्थोऽसि। स त्वम्। सृजन्=उद्यन्। सूर्य्यो न=सूर्य्य इव। रश्मिभिः। यथा किरणैः उद्यन् सूर्य्यः। तथा शर्धन्=समर्थस्त्वम्। तमांसि=अज्ञानानि। जिघ्नसे=जहि ॥३२॥