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उद॑ग्ने॒ शुच॑य॒स्तव॑ शु॒क्रा भ्राज॑न्त ईरते । तव॒ ज्योतीं॑ष्य॒र्चय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud agne śucayas tava śukrā bhrājanta īrate | tava jyotīṁṣy arcayaḥ ||

पद पाठ

उत् । अ॒ग्ने॒ । शुच॑यः । तव॑ । शु॒क्राः । भ्राज॑न्तः । ई॒र॒ते॒ । तव॑ । ज्योतीं॑षि । अ॒र्चयः॑ ॥ ८.४४.१७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:44» मन्त्र:17 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:39» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:17


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रमहः) हे मित्रभूत जीवों से सुपूज्य (अग्ने) महेश ! (शुक्रेण) शुद्ध (शोचिषा) तेज से युक्त (सः+त्वम्) वह तू (देवैः) हमारे इन्द्रियों के साथ (नः) हमारे (बर्हिषि) हृदयासन पर (आसत्सि) बैठ ॥१४॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर को हृदय में बैठाकर ध्यान करे और इन्द्रियों को प्रथम वश कर उसकी स्तुति मन से करे ॥१४॥
टिप्पणी: देव−इन्द्रियवाचक देव शब्द है, यह प्रसिद्ध है ॥१४॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे मित्रमहः=मित्रैर्जीवैः पूजनीय अग्ने ईश ! शुक्रेण=शुद्धेन। शोचिषा=तेजसा युक्तः। स त्वम्। देवैरस्माकमिन्द्रियैः सह। नोऽस्माकम्। बर्हिषि=हृदयासने। आ सत्सि=आसीद=उपविश ॥१४॥