वांछित मन्त्र चुनें

तत्ते॑ सहस्व ईमहे दा॒त्रं यन्नोप॒दस्य॑ति । त्वद॑ग्ने॒ वार्यं॒ वसु॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tat te sahasva īmahe dātraṁ yan nopadasyati | tvad agne vāryaṁ vasu ||

पद पाठ

तत् । ते॒ । स॒ह॒स्वः॒ । ई॒म॒हे॒ । दा॒त्रम् । यत् । न । उ॒प॒ऽदस्य॑ति । त्वत् । अ॒ग्ने॒ । वार्य॑म् । वसु॑ ॥ ८.४३.३३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:33 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:35» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:33


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वाधार परमात्मन् ! (ते+घ+इत्) तेरी ही महती कृपा से (नृचक्षसः) मनुष्यों की ऊँच नीच विविध दशाओं को देख उनसे घृणायुक्त अत एव (विश्वा+अहा) सब दिन (स्वाध्यः) शुभ कर्मों को करते हुए आपसे प्रार्थना करते हैं कि (दुर्गहा) दुर्गम क्लेशों को (तरन्तः+स्याम) पार करने में हम समर्थ होवें ॥३०॥
भावार्थभाषाः - जब ज्ञानी जन अपनी तथा अन्यान्य जीवों की विचित्र दशाओं पर ध्यान देते हैं, तब उनसे घृणा और वैराग्य उत्पन्न होता है, तत्पश्चात् उनकी निवृत्ति के लिये ईश्वर के निकट पहुँचता है। सदा ईश्वर की ओर आओ, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥३०॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! ते+घ+इत्=तवैव कृपया। वयं। नृचक्षसः=नृणां मनुष्याणां विविधदशाद्रष्टारः। अत एव। विश्वा=विश्वानि सर्वाणि। अहा=अहानि। स्वाध्यः=सुकर्माणो भूत्वा। दुर्गहा=दुःखेन गाहयितव्यानि वस्तूनि। तरन्तः स्याम। तादृशी कृपा विधेया ॥३०॥