वांछित मन्त्र चुनें

उ॒त त्वा॑ग्ने॒ मम॒ स्तुतो॑ वा॒श्राय॑ प्रति॒हर्य॑ते । गो॒ष्ठं गाव॑ इवाशत ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tvāgne mama stuto vāśrāya pratiharyate | goṣṭhaṁ gāva ivāśata ||

पद पाठ

उ॒त । त्वा॒ । अ॒ग्ने॒ । मम॑ । स्तुतः॑ । वा॒श्राय॑ । प्र॒ति॒ऽहर्य॑ते । गो॒ऽस्थम् । गावः॑ऽइव । आ॒श॒त॒ ॥ ८.४३.१७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:17 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:32» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:17


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

इस ऋचा से ईश्वर का महत्त्व दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वगतिप्रद परमात्मन् ! (हि) जिस हेतु (त्वम्) तू (अग्निना) अग्नि के साथ अग्नि होकर (समिध्यसे) भासित होता है, (विप्रेण) मेधावी विद्वान् के साथ (विप्रः) विद्वान् होकर (सता) साधु के साथ (सत्) साधु होकर (सख्या+सखा) मित्र के साथ मित्र होकर प्रकाशित हो रहा है, अतः तू अगम्य और अबोध्य हो रहा है ॥१४॥
भावार्थभाषाः - जैसे सूर्य्य और वायु आदि दृश्य होते हैं, तद्वत् परमात्मा स्वरूप से कहीं पर भी दृश्य नहीं होता। उसकी कोई आकृति रूप नहीं। अतः वेद भगवान् कहते हैं कि तत्-तत् रूप के साथ तत्-तत् स्वरूप ही वह है। “रूपं-रूपं प्रतिरूपो बभूव” इत्यादि भी इसी अभिप्राय से कहा गया है, अतः वह अगम्य हो रहा है ॥१४॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

अनयेश्वरस्य महत्त्वं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने=सर्वगतिप्रद ! हि=यतः। अग्निना सह अग्निर्भूत्वा। त्वं समिध्यसे=सम्यग् दीप्यसे। विप्रेण=मेधाविना सह विप्रो भूत्वा समिध्यसे। सता=साधुना सह। सन्=साधुर्भूत्वा। सख्या सह=सखाभूत्वा समिध्यसे। अतस्तत्तद्रूपोऽसीत्यर्थः। अत एवागम्योऽसि ॥१४॥