वांछित मन्त्र चुनें

प्र च॑क्रे॒ सह॑सा॒ सहो॑ ब॒भञ्ज॑ म॒न्युमोज॑सा । विश्वे॑ त इन्द्र पृतना॒यवो॑ यहो॒ नि वृ॒क्षा इ॑व येमिरे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra cakre sahasā saho babhañja manyum ojasā | viśve ta indra pṛtanāyavo yaho ni vṛkṣā iva yemire ||

पद पाठ

प्र । च॒क्रे॒ । सह॑सा । सहः॑ । ब॒भञ्ज॑ । म॒न्युम् । ओज॑सा । विश्वे॑ । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । पृ॒त॒ना॒ऽयवः॑ । य॒हो॒ इति॑ । नि । वृ॒क्षाःऽइ॑व । ये॒मि॒रे॒ ॥ ८.४.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:4» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:30» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

उसकी महिमा दिखलाई जाती है।

पदार्थान्वयभाषाः - वह इन्द्र (सहसा) निज महाबल से (सहः) दुष्टों की शक्ति को (प्र+चक्रे) दमन कर देता है। पुनः वह (ओजसा) महाशक्ति से (मन्युम्) उनके क्रोध को (बभञ्ज) विनष्ट किया करता है। पूर्वार्ध अप्रत्यक्षकृत है। आगे उत्तरार्ध प्रत्यक्षकृत स्तुति है। (इन्द्र) हे इन्द्र ! (यहो) हे महान् परमात्मन् ! (विश्वे) सब (पृतनायवः) परस्पर युद्धाभिलाषी उपद्रवकारी (ते) तेरे भय से (वृक्षाः+इव) वृक्ष के समान अचल हो (ते) तुझसे (नि+येमिरे) नियमित होते हैं अर्थात् तेरे निकट भीत होकर वे नम्र हो जाते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - यदि परम ईश दुष्टों का दमन न करे, उनके गर्व के ऊपर प्रहार न करे, तो वे निःशङ्क होकर दुर्बलों को उखाड़ डालें। उसी के भय से वे दुर्जन हत्याकाण्ड से निवृत्त रहते हैं। हे मनुष्यो ! तुम भी सदा दुष्टों, चौरादिकों, पापियों, लम्पटों, उद्दण्ड क्षत्रियों और प्रजापीड़क जनों को दण्ड देने और वश में करने के लिये यत्न करो ॥५॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे ऐश्वर्य्यशालिन् ! आप (सहसा) अपने बल से (सहः) शत्रुबल को (प्रचक्रे) दबाते हैं (ओजसा) अपने पराक्रम से (मन्युं) शत्रुक्रोध को (बभञ्ज) भञ्जन करते हैं (यहो) हे महत्त्वविशिष्ट ! (ते) आपके (विश्वे) सब (पृतनायवः) युद्ध चाहनेवाले शत्रु (वृक्षा इव) वृक्ष के समान (नियेमिरे) निश्चेष्ट हो जाते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में जिज्ञासुजनों की ओर से कर्मयोगी की स्तुति वर्णन की गई है कि हे युद्धविशारद कर्मयोगिन् ! आपके सन्मुख शत्रुबल पाषाणवत् निश्चेष्ट हो जाता है अर्थात् शत्रु का बल अपूर्ण होने से वह आपके सन्मुख नहीं ठहर सकता, आपका बल पूर्ण होने के कारण शत्रु का बल तथा क्रोध सदा भञ्जन होता रहता है ॥५॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

तस्य महिमा प्रदर्श्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - पूर्वार्धमप्रत्यक्षकृतम्। स इन्द्रः। सहसा=महाबलेन। दुष्टानाम्। सहः=बलम्। प्रचक्रे=दमयति। ओजसा=बलेन। तेषाम्। मन्युम्=क्रोधञ्च। बभञ्ज=निवारयति। हे इन्द्र ! हे यहो=महतां महन्। यहु इति महन्नाम। विश्वे=सर्वे। पृतनायवः=परस्परं युद्धकामा उपद्रवकारिणो जनाः। वृक्षा इव अचलाः। ते=त्वया। नियेमिरे=नियता बद्धा भवन्ति। तवाज्ञायाम्। तव समीपे भीता नमन्तीत्यर्थः ॥५॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे ऐश्वर्य्यशालिन् ! भवान् (सहसा) स्वबलेन (सहः) शत्रुबलं (प्रचक्रे) अभिभूतवान् (ओजसा) स्वपराक्रमेण (मन्युं) शत्रुक्रोधं (बभञ्ज) भग्नवान् (यहो) हे महत्त्वविशिष्ट ! (ते) तव (विश्वे) सर्वे (पृतनायवः) योद्धुमिच्छवः (वृक्षा इव) वृक्षा यथा निश्चलास्तथा (नियेमिरे) निश्चला अभूवन् ॥५॥