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प्रा॒त॒र्याव॑भि॒रा ग॑तं दे॒वेभि॑र्जेन्यावसू । इन्द्रा॑ग्नी॒ सोम॑पीतये ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prātaryāvabhir ā gataṁ devebhir jenyāvasū | indrāgnī somapītaye ||

पद पाठ

प्रा॒त॒र्याव॑ऽभिः । आ । ग॒त॒म् । दे॒वेभिः॑ । जे॒न्या॒व॒सू॒ इति॑ । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । सोम॑ऽपीतये ॥ ८.३८.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:38» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सधस्तुती) हे प्रजाओं के साथ स्तवनीय (नरा) हे प्रजाओं के नायक (इन्द्राग्नी) क्षत्रिय ! तथा ब्राह्मण यद्वा राजा और दूत, आप दोनों (यज्ञम्+जुषेथाम्) हम लोगों के शुभकर्म के रक्षा द्वारा सेवें और (इष्टये) यज्ञ के लिये (सुतम्+सोमम्) सम्पादित सोमरस को पीने के लिये यहाँ (आ+गतम्) आवें ॥४॥
भावार्थभाषाः - राजा और ब्राह्मण या राजा और दूत, दोनों मिलकर यज्ञ की रक्षा करें ॥४॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदेवाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सधस्तुती ! हे प्रजाभिः सहस्तवनीयौ ! हे नरा=नरौ नेतारौ। हे इन्द्राग्नी। युवां। यज्ञम्। जुषेथाम्=सेवेथाम्। इष्टये=यागाय च। सुतं=सम्पादितम्। सोमं पातुम्। आगतम्=आगच्छतम् ॥४॥