विभि॒र्द्वा च॑रत॒ एक॑या स॒ह प्र प्र॑वा॒सेव॑ वसतः ॥
                                    अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
                  
                
                vibhir dvā carata ekayā saha pra pravāseva vasataḥ ||
                  पद पाठ 
                  
                                विऽभिः॑ । द्वा । च॒र॒तः॒ । एक॑या । स॒ह । प्र । प्र॒वा॒साऽइ॑व । व॒स॒तः॒ ॥ ८.२९.८
                  ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:29» मन्त्र:8 
                  | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:36» मन्त्र:8 
                  | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:8
                
              
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                    शिव शंकर शर्मा
मन और अहङ्कार दिखलाते हैं।
                   पदार्थान्वयभाषाः -  (द्वा) दो देव मन और अहङ्कार (विभिः) वासनाओं के साथ (चरतः) चलते हैं और (एकया) एक बुद्धि के (सह) साथ (प्र+वसतः) प्रवास करते हैं। यहाँ दृष्टान्त देते हैं (प्रवासा+इव) जैसे दो प्रवासी सदा मिलकर चलते हैं। तद्वत्। मन और अहङ्कार बुद्धिरूप पत्नी के साथ सदा चलायमान रहते हैं ॥८॥              
              
              
                            
                  भावार्थभाषाः -  मन और अहङ्कार ये दोनों जीवों को अपथ में ले जानेवाले हैं। अतः इनको अपने वश में करके उत्तमोत्तम कार्य्य सिद्ध करें ॥८॥              
              
              
                            
              
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                    शिव शंकर शर्मा
मनोऽहङ्कारौ दर्शयति।
                   पदार्थान्वयभाषाः -  द्वा=द्वौ देवौ=मनोऽहंकारौ। विभिः=विर्वासना, ताभिर्वासनाभिः। सह चरतः। पुनः। एकया=बुद्ध्या। सह। प्रवसतः=प्रवासं कुरुतः। अत्र दृष्टान्तः। प्रवासा इव। यथा द्वौ प्रवासिनौ मिलित्वा चरतस्तद्वत् ॥८॥              
              
              
              
              
                            
              
             
                  