वज्र॒मेको॑ बिभर्ति॒ हस्त॒ आहि॑तं॒ तेन॑ वृ॒त्राणि॑ जिघ्नते ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
vajram eko bibharti hasta āhitaṁ tena vṛtrāṇi jighnate ||
पद पाठ
वज्र॑म् । एकः॑ । बि॒भ॒र्ति॒ । हस्ते॑ । आऽहि॑तम् । तेन॑ । वृ॒त्राणि॑ । जि॒घ्न॒ते॒ ॥ ८.२९.४
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:29» मन्त्र:4
| अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:36» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:4
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शिव शंकर शर्मा
आत्मदेव को दिखलाते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (एकः) एक आत्मदेव (हस्ते+आहितम्) हस्त में निहित=स्थापित (वज्रम्) विवेकरूप महान् आयुध (बिभर्ति) रखता है, (तेन) उस वज्र से (वृत्राणि) निखिल विघ्नों को (जिघ्नते) हनन करता रहता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - केवल विद्या से वा ज्ञान से वा कर्म्मकलाप से यह जीव निषिद्ध कर्म्मों से निवृत्त नहीं होता, किन्तु निवृत्ति के लिये वस्तुतत्त्व का पूर्णज्ञान और बलवती इच्छाशक्ति होनी चाहिये, यही दोनों आत्मा के महास्त्र हैं, इनका ही यत्न से उपार्जन करें ॥४॥
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शिव शंकर शर्मा
आत्मदेवं दर्शयति।
पदार्थान्वयभाषाः - एकः=आत्मदेवः। हस्ते=पाणौ। आहितम्=स्थापितम्। वज्रम्=महाऽऽयुधम्। बिभर्ति=धारयति। तेन वज्रेण। वृत्राणि=निखिलान् विघ्नान्। जिघ्नते=हन्ति=निपातयति ॥४॥