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यद॒द्य सूर॒ उदि॑ते॒ यन्म॒ध्यंदि॑न आ॒तुचि॑ । वा॒मं ध॒त्थ मन॑वे विश्ववेदसो॒ जुह्वा॑नाय॒ प्रचे॑तसे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad adya sūra udite yan madhyaṁdina ātuci | vāmaṁ dhattha manave viśvavedaso juhvānāya pracetase ||

पद पाठ

यत् । अ॒द्य । सूरे॑ । उत्ऽइ॑ते । यत् । म॒ध्यन्दि॑ने । आ॒ऽतुचि॑ । वा॒मम् । ध॒त्थ । मन॑वे । वि॒श्व॒ऽवे॒द॒सः॒ । जुह्वा॑नाय । प्रऽचे॑तसे ॥ ८.२७.२१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:27» मन्त्र:21 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:34» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:21


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शिव शंकर शर्मा

विद्वानों की उदारता दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्ववेदसः) हे सर्वधन हे सर्वज्ञान विद्वानो ! (यद्) जिस कारण (अद्य) इस क्षण (सूरे+उदिते) सूर्य्योदयकाल (यत्) जिस कारण (मध्यन्दिने) मध्याह्न (आतुचि) और सायंकाल अर्थात् प्रतिक्षण आप (जुह्वानाय) कर्मनिरत (प्रचेतसे) ज्ञानी और जिसकी (मनवे) पुरुष को (वामम्+धत्थ) अच्छे-२ पदार्थ धन और लौकिक सुख देते हैं। अतः आपकी गोष्ठी हम चाहते हैं, जिससे हम भी उदार होवें ॥२१॥
भावार्थभाषाः - दानपात्र अनुग्राह्य और उत्थाप्य वे पुरुष हैं, जो जुह्वान और प्रचेता हों। ईश्वरीयेच्छा के अनुकूल शुभकर्मों में जिनकी प्रवृत्ति हो, वे जुह्वान और तदीय विभूतियों के अध्ययन और ज्ञान में निपुण जन प्रचेता हैं ॥२१॥
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शिव शंकर शर्मा

विदुषामुदारतां दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विश्ववेदसः=सर्वधनाः सर्वज्ञानाः ! यद्=यस्मात्। अद्य। सूरे=सूर्य्ये। उदिते। यद्=यस्मात्। मध्यन्दिने। आतुचि=सायंकाले वा। जुह्वानाय=जुह्वते=कर्मनिरताय। प्रचेतसे=प्रकृष्टज्ञानाय। मनवे=पुरुषाय। वामम्=वननीयम्= कमनीयं धनम्। धत्थ=धारयथ। तस्माद् युष्माकं गोष्ठीं वयं कामयामहै। वयमप्युदारा भवेमेति प्रार्थना ॥२१॥