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यद॒द्य सूर्य॑ उद्य॒ति प्रिय॑क्षत्रा ऋ॒तं द॒ध । यन्नि॒म्रुचि॑ प्र॒बुधि॑ विश्ववेदसो॒ यद्वा॑ म॒ध्यंदि॑ने दि॒वः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad adya sūrya udyati priyakṣatrā ṛtaṁ dadha | yan nimruci prabudhi viśvavedaso yad vā madhyaṁdine divaḥ ||

पद पाठ

यत् । अ॒द्य । सूर्यः॑ । उ॒त्ऽय॒ति । प्रिय॑ऽक्षत्राः । ऋ॒तम् । द॒ध । यत् । नि॒ऽम्रुचि॑ । प्र॒ऽबुधि॑ । वि॒श्व॒ऽवे॒द॒सः॒ । यत् । वा॒ । म॒ध्यन्दि॑ने । दि॒वः ॥ ८.२७.१९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:27» मन्त्र:19 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:34» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:19


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शिव शंकर शर्मा

उपकार के लिये कालनियम नहीं, इससे यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रियक्षत्राः) हे प्रियबल, हे कृपालु (विश्ववेदसः) हे सर्वधन विद्वानो ! (अद्य) इस क्षण (यद्) यद्वा (सूर्य्ये+उद्यति) सूर्य्य के उदय होने पर प्रातःकाल (यद्) यद्वा (निम्रुचि) सूर्य्यास्तवेला में (प्रबुधि) प्रबोधकाल या अति प्रातःसमय (दिवः) यद्वा दिन के (मध्यन्दिने) मध्यसमय में अर्थात् किसी समय में आप प्रजाओं में (ऋतम्+दध) सत्यता की स्थापना कीजिये ॥१९॥
भावार्थभाषाः - शक्ति वा बल वही है, जिससे प्रजा के उत्तम लाभदायी कार्य हों। धन भी वही है, जिस से सर्वोपकार हो। बहुत लोग किसी विशेष स्थान में, विशेष पात्र में और नियत तिथि में ही दानादि उपकार करना चाहते हैं, परन्तु वेदभगवान् कहते हैं कि उपकार का कोई समय नियत नहीं ॥१९॥
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शिव शंकर शर्मा

उपकाराय न कालनियमोऽस्तीत्यनया दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे प्रियक्षत्राः=प्रियबला दयालवः ! हे विश्ववेदसः=सर्वधना विद्वांसः ! यूयम्। यद्=यद्वा। अद्य=अस्मिन् काले। यद्वा। सूर्य्ये। उद्यति सति। यद्=यद्वा। निम्रुचि=सायंकाले। यद्वा। प्रबुधि=प्रबोधे प्रातःकाले। यद्वा दिवो मध्यन्दिने। ऋत्यम्=सत्यनियमं सत्योपदेशं सत्यमार्गमित्येवंविधं वस्तु प्रजासु। दध=धत्त=स्थापयत ॥१९॥