तव॑ वायवृतस्पते॒ त्वष्टु॑र्जामातरद्भुत । अवां॒स्या वृ॑णीमहे ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
tava vāyav ṛtaspate tvaṣṭur jāmātar adbhuta | avāṁsy ā vṛṇīmahe ||
पद पाठ
तव॑ । वा॒यो॒ इति॑ । ऋ॒तः॒ऽप॒ते॒ । त्वष्टुः॑ । जा॒मा॒तः॒ । अ॒द्भु॒त॒ । अवां॑सि । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥ ८.२६.२१
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:26» मन्त्र:21
| अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:30» मन्त्र:1
| मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:21
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शिव शंकर शर्मा
उसके गुण प्रकट करते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतस्पते) ईश्वर के सत्यनियमों को पालनेवाले (त्वष्टुः+जामातः) सूक्ष्म से सूक्ष्म कार्य्य के पैदा और निर्माण करनेवाले (अद्भुत) हे आश्चर्यकार्य्यकारी सेनानायक ! (ते+अवांसि+आवृणीमहे) हम सकलजन आपकी रक्षाओं के प्रार्थी हैं ॥२१॥
भावार्थभाषाः - ईश्वरीय और राजकीय दोनों नियमों को पालन करनेवाले तथा सूक्ष्मकार्यसाधक, जो वीर महावीर वे सेनानायक-योग्य होते हैं ॥२१॥
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शिव शंकर शर्मा
अस्य गुणान् प्रकटयति।
पदार्थान्वयभाषाः - हे ऋतस्पते=सत्यपालक ! त्वष्टुः=सूक्ष्मकार्य्यस्य। जामातः=जनयितः=निर्मातश्च। हे अद्भुत ! ते=तव। अवांसि=पालनानि। आवृणीमहे ॥२१॥