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अधि॒ या बृ॑ह॒तो दि॒वो॒३॒॑ऽभि यू॒थेव॒ पश्य॑तः । ऋ॒तावा॑ना स॒म्राजा॒ नम॑से हि॒ता ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhi yā bṛhato divo bhi yūtheva paśyataḥ | ṛtāvānā samrājā namase hitā ||

पद पाठ

अधि॑ । या । बृ॒ह॒तः । दि॒वः । अ॒भि । यू॒थाऽइ॑व । पश्य॑तः । ऋ॒तऽवा॑ना । स॒म्ऽराजा॑ । नम॑से । हि॒ता ॥ ८.२५.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:25» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी अर्थ को दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनः (या) जो आप दोनों (बृहतः+दिवः) बहुत-२ और बड़े-२ विद्वानों को (अभि) अपने सम्मुख (यूथा+इव) झुण्ड के झुण्ड (अधिपश्यतः) ऊपर से देखते हैं (ऋतावाना) सत्यमार्ग पर चलनेवाले (सम्राजा) अच्छे शासक (नमसे) नमस्कार के योग्य (हिता) जगत् के हितकारी हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - जिस कारण मित्र और वरुण दोनों महाप्रतिनिधि हैं, इसलिये वे उच्च और उत्तम सिंहासन के ऊपर बैठते हैं और अन्यान्य सिंहासन के नीचे बैठते हैं, इसलिये मन्त्र में कहा गया है कि वे दोनों ऊपर से झुण्ड के झुण्ड अपने सामने विद्वानों को देखते हैं ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमेव दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनः। यूथा इव=यूथानीव। बृहतः=महतः। दिवः=देवान्। या=यौ। अभि=अभिमुखम्। अधिपश्यतः। यौ। ऋतावाना=ऋतावानौ। सम्राजौ। नमसे=नमस्काराय। हिता=हितौ ॥७॥