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तत्सूर्यं॒ रोद॑सी उ॒भे दो॒षा वस्तो॒रुप॑ ब्रुवे । भो॒जेष्व॒स्माँ अ॒भ्युच्च॑रा॒ सदा॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tat sūryaṁ rodasī ubhe doṣā vastor upa bruve | bhojeṣv asmām̐ abhy uc carā sadā ||

पद पाठ

तत् । सूर्य॑म् । रोद॑सी॒ इति॑ । उ॒भे इति॑ । दो॒षा । वस्तोः॑ । उप॑ । ब्रु॒वे॒ । भो॒जेषु॑ । अ॒स्मान् । अ॒भि । उत् । च॒र॒ । सदा॑ ॥ ८.२५.२१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:25» मन्त्र:21 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:21


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सूर्य्यम्) सूर्य्य के समान (तत्) मित्र और वरुण का वह-२ नियम और उपाय (उभे+रोदसी) दोनों लोकों में प्रचलित है, उसको मैं (दोषा) रात्रि में (वस्तोः) दिन में (उपब्रुवे) उसकी स्तुति करता हूँ अर्थात् सर्वदा उसका प्रचार करता हूँ। हे भगवन् ! (अस्मान्) वैसे हम लोगों को (सदा) सर्वदा (भोजेषु) विविध अभ्युदयों के ऊपर (अभ्युच्चर) स्थापित कर ॥२१॥
भावार्थभाषाः - हम लोग तब ही धनों के अधिकारी हो सकते हैं, जब राज्यप्रचालित और ईश्वरीय नियमों को अच्छे प्रकार मानें ॥२१॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमेवार्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - सूर्य्यमिव। तद्वारुणं मैत्रञ्च तेजः। उभे+रोदसी=उभौ लोकौ व्याप्तम्। दोषा=रात्रौ। वस्तोः=दिने च। उपब्रुवे=तत्स्तौमि। हे मित्र ! भोजेषु=भोग्यपदार्थेषु। अस्मान्। सदा। अभ्युच्चर=उद्गमय=स्थापय ॥२१॥