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विश्वा॑नि वि॒श्वम॑नसो धि॒या नो॑ वृत्रहन्तम । उग्र॑ प्रणेत॒रधि॒ षू व॑सो गहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśvāni viśvamanaso dhiyā no vṛtrahantama | ugra praṇetar adhi ṣū vaso gahi ||

पद पाठ

विश्वा॑नि । वि॒श्वऽम॑नसः । धि॒या । नः॒ । वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒ । उग्र॑ । प्र॒ने॒त॒रिति॑ प्रऽनेतः । अधि॑ । सु । व॒सो॒ इति॑ । ग॒हि॒ ॥ ८.२४.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:24» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वही विषय आ रहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहन्तम) हे अतिशय विघ्नविनाशक ! (उग्र) हे उग्र ! (प्रणेतः) हे उत्कृष्टनायक ! (वसो) हे जगद्वासक ! (विश्वमनसः+नः) सबके कल्याणकारी हम लोगों के (विश्वानि) सकल शुभ कर्मों को (धिया) ज्ञान और मन से (सु) अच्छे प्रकार (अधि+गहि) पवित्र कर ॥७॥
भावार्थभाषाः - यदि हम अन्यों के कल्याण करने में मन लगावें, तो अवश्य हमारा मन पवित्र होगा ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदनुवर्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे वृत्रहन्तम=हे अतिशयेन विघ्नविनाशक ! हे उग्र ! हे प्रणेतः=हे उत्कृष्टनायक ! हे वसो=वासक ! विश्वमनसः=विश्वमनसाम्=विश्वेषु सर्वेषु कल्याणं मनो ये येषामिति तेषां सर्वकल्याणकारिणाम्। नः=अस्माकम्। विश्वानि=सर्वाणि कर्माणि। धिया=मनसा। सु=सुष्ठु। अधिगहि=अधिगच्छ ॥७॥