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उपो॒ हरी॑णां॒ पतिं॒ दक्षं॑ पृ॒ञ्चन्त॑मब्रवम् । नू॒नं श्रु॑धि स्तुव॒तो अ॒श्व्यस्य॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upo harīṇām patiṁ dakṣam pṛñcantam abravam | nūnaṁ śrudhi stuvato aśvyasya ||

पद पाठ

उपो॒ इति॑ । हरी॑णाम् । पति॑म् । दक्ष॑म् । पृ॒ञ्चन्त॑म् । अ॒ब्र॒व॒म् । नू॒नम् । श्रु॒धि॒ । स्तु॒व॒तः । अ॒श्व्यस्य॑ ॥ ८.२४.१४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:24» मन्त्र:14 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:17» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:14


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वही विषय आ रहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - मैं उपासक (हरीणाम्) परस्पर हरणशील जगतों का (पतिम्) पालक (दक्षम्) परमबलधारक (पृचन्तम्) प्रकृति और जीव को मिलानेवाले परमेश्वर के (उपो+अब्रवम्) समीप पहुँच निवेदन करता हूँ कि हे भगवन् ! तू (स्तुवतः) स्तुति करते हुए (अश्व्यस्य) ईश्वर की ओर जानेवाले ऋषि के स्तोत्र को (नूनम्+श्रुधि) निश्चित रूप से सुन ॥१४॥
भावार्थभाषाः - जो ईश्वरसम्बन्धी काव्यों को बनाते और उसके तत्त्वों को समझते हैं, वे ही यहाँ ऋषि कहाते हैं। वे जितेन्द्रिय होने के कारण अश्व्य कहाते हैं ॥१४॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदनुवर्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - अहमुपासकः। हरीणाम्=परस्परहरणशीलानां जगताम्। पतिम्=पालकम्। दक्षम्=प्रवर्धकम्। पृचन्तम्=मिश्रयन्तम्। ईशम्। उपो+अब्रवम्=उपेत्य ब्रवीमि। हे भगवन् ! त्वं हि। स्तुवतः=स्तुतिं कुर्वतः। अश्व्यस्य=ऋषेः। नूनं स्तोत्रम्। श्रुधि=शृणु ॥१४॥