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नू॒नम॑र्च॒ विहा॑यसे॒ स्तोमे॑भिः स्थूरयूप॒वत् । ऋषे॑ वैयश्व॒ दम्या॑या॒ग्नये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nūnam arca vihāyase stomebhiḥ sthūrayūpavat | ṛṣe vaiyaśva damyāyāgnaye ||

पद पाठ

नू॒नम् । अ॒र्च॒ । विऽहा॑यसे । स्तोमे॑भिः । स्थू॒र॒यू॒प॒ऽवत् । ऋषे॑ । वै॒य॒श्व॒ । दम्या॑य । अ॒ग्नये॑ ॥ ८.२३.२४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:24 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:24


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शिव शंकर शर्मा

उस काल में परमात्मा ही ध्येय है, यह इससे दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (वैयश्व) हे जितेन्द्रिय (ऋषे) कविगण (स्थूरयूपवत्) याज्ञिक पुरुषों के समान (स्तोमेभिः) स्तुतियों के द्वारा (अग्नये) परमात्मा की कीर्ति को (नूनमर्च) निश्चय गान करे, जो (विहायसे) सर्वव्यापक और (दम्याय) गृहपति है ॥२४॥
भावार्थभाषाः - यहाँ परमात्मा स्वयं आज्ञा देता है कि मेरी अर्चना करो और मुझको विहायस्=महान् व्यापक और दम्य=गृहपति समझो। अर्थात् मुझको परिवार में ही सम्मिलित समझो ॥२४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वैयश्व, ऋषे) हे विगत शक्तिवाले यजमान के याजक ऋषि ! आप (दम्याय) जो गृहों के हितकारक हैं, ऐसे (विहायसे) महान् (अग्नये) शूरपति के अर्थ (नूनम्) निश्चय (स्थूरयूपवत्) स्थूल स्तम्भवाले गृहों में रहनेवाले धनिकों के समान उत्साहसहित (अर्च) पूजन करो ॥२४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में यह वर्णन किया है कि यज्ञनिर्माता यजमान का कर्तव्य है कि वह युद्धविद्यावेत्ता वीरों के लिये सुन्दर=सुखदायक तथा युद्धयोग्य गृहों का निर्माण करे, ताकि वे सब प्रकार की बाधाओं से रहित होकर देश को सुरक्षित रखें ॥२४॥
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शिव शंकर शर्मा

तस्मिन् काले परमात्मैव ध्येय इति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे वैयश्व=जितेन्द्रिय ! अश्वः=इन्द्रियगणः। विगतोऽश्वो यस्य स व्यश्वः। स एव वैयश्वः। ऋषे=कवे ! स्थूरयूपवत्= स्थूलयूपो याज्ञिकस्तद्वत्। स्तोमेभिः=स्तोत्रैः सह। विहायसे= महते। दम्याय=गृहपतये। दमो गृहम्। अग्नये। नूनम्। अर्च=पूजय=गाय ॥२४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वैयश्व, ऋषे) हे शक्तिमिच्छोर्याजक ऋषे ! (दम्याय) गृहहिताय (विहायसे) तेजोभिर्महते (अग्नये) शूरपतये (नूनम्) निश्चयम् (स्थूरयूपवत्) स्थूला यूपा यस्य तेन धनिना तुल्यम् (अर्च) पूजय ॥२४॥