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व्य॑श्वस्त्वा वसु॒विद॑मुक्ष॒ण्युर॑प्रीणा॒दृषि॑: । म॒हो रा॒ये तमु॑ त्वा॒ समि॑धीमहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vyaśvas tvā vasuvidam ukṣaṇyur aprīṇād ṛṣiḥ | maho rāye tam u tvā sam idhīmahi ||

पद पाठ

विऽअ॑श्वः । त्वा॒ । व॒सु॒ऽविद॑म् । उ॒क्ष॒ण्युः । अ॒प्री॒णा॒त् । ऋषिः॑ । म॒हः । रा॒ये । तम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । सम् । इ॒धी॒म॒हि॒ ॥ ८.२३.१६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:16 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:16


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शिव शंकर शर्मा

उसकी स्तुति दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (उक्षण्युः) ज्ञानों के सींचनेवाले (व्यश्वः) जितेन्द्रिय (ऋषिः) कविगण सदा (वसुविदम्+त्वा) धनों को पहुँचानेवाले तुझको अपनी-२ वाणियों से (अप्रीणात्) प्रसन्न करते आये हैं, इसलिये हम उपासकगण भी (तम्+उ+त्वा) उसी तुझको (महः+राये) महदैश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये (समिधीमहि) सम्यग् दीप्त और ध्यान करते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - जिस परमात्मा की स्तुति-प्रार्थना सदा से ऋषिगण करते आए हैं, उसी की पूजा हम भी करें ॥१६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उक्षण्युः) जो बलों की वर्षा करनेवाले आपको चाहनेवाला (व्यश्वः, ऋषिः) अश्वादि सम्पत्तिरहित विद्वान् (महः, राये) पर्याप्त धन के लिये (वसुविदम्, अप्रीणात्) धन को प्राप्त करानेवाले आपको आराधनाद्वारा प्रसन्न करता है, (तम्, उ, त्वा) उन्हीं आपको (समिधीमहि) यशों द्वारा हम लोग भी प्रकाशित करते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि जो पुरुष बलद्वारा प्रजा को सिञ्चन करनेवाले क्षत्रियवर्ग को अपने देश में उत्पन्न कर वृद्धि करते हैं, वे ऐश्वर्य्य तथा धन-धान्यादि सम्पूर्ण पदार्थों से विभूषित होते हैं ॥१६॥
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शिव शंकर शर्मा

तस्य स्तुतिं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - उक्षण्युः=ज्ञानादिसेक्ता। “उक्ष सेचने”। व्यश्वः=जितेन्द्रियः। ऋषिः=कविः। वसुविदम्=धनप्रापकम्। त्वा=त्वां देवम्। अप्रीणात्=अतोषयत्। तमु+त्वा=तमेव त्वाम्। वयमपि। महः=महते। राये। समिधीमहि=सम्यक् प्रज्वालयामो ध्यायामः ॥१६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उक्षण्युः) यद् बलस्य सेक्तारं त्वामिच्छुः (व्यश्वः, ऋषिः) अश्वादिसम्पद्रहितो विद्वान् (महः, राये) महते धनाय (वसुविदम्) धनस्य लम्भकं त्वाम् (अप्रीणात्) प्रसादयति (तम्, उ, त्वा) तमेव त्वां (समिधीमहि) सन्दीपयामः यशसा वर्द्धयामः ॥१६॥