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न तस्य॑ मा॒यया॑ च॒न रि॒पुरी॑शीत॒ मर्त्य॑: । यो अ॒ग्नये॑ द॒दाश॑ ह॒व्यदा॑तिभिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na tasya māyayā cana ripur īśīta martyaḥ | yo agnaye dadāśa havyadātibhiḥ ||

पद पाठ

न । तस्य॑ । मा॒यया॑ । च॒न । रि॒पुः । ई॒शी॒त॒ । मर्त्यः॑ । यः । अ॒ग्नये॑ । द॒दाश॑ । ह॒व्यदा॑तिऽभिः ॥ ८.२३.१५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:15 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:15


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शिव शंकर शर्मा

उपासना की महिमा दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो आदमी (अग्नये) ईश्वर की प्रीति के लिये (हव्यदातिभिः) हव्य पदार्थों के दान के साथ-२ (ददाश) अन्यान्य दान देता है, (तस्य) उस पुरुष के ऊपर (मर्त्यः+रिपुः) मानवशत्रु (मायया+चन) अपनी माया से (न+ईशीत) शासन नहीं कर सकता ॥१५॥
भावार्थभाषाः - ब्रह्मोपासक जनों को इस लोक में किसी से भय नहीं होता, क्योंकि उनकी शक्ति और प्रभाव पृथ्वी पर फैलकर सबको अपने वश में कर लेते हैं, उनका प्रताप सम्राट् से भी अधिक हो जाता है, परन्तु उपासना करने में मनोयोग की पूर्णता होनी चाहिये ॥१५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (रिपुः, मर्त्यः) शत्रुजन (मायया, चन) छल से भी (तस्य, न, ईशीत) उस पर प्रभाव नहीं डाल सकता (यः) जो (अग्नये) उस शूरपति को (हव्यदातिभिः) हव्यपदार्थों के दान से (ददाश) परिचरण करता है ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष न्यायशील, सत्यपरायण तथा दृढ़व्रतधारी क्षात्रधर्म की रक्षा करते हैं, उन पर कोई मायावी राक्षस अपना प्रभाव नहीं डाल सकता ॥१५॥
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शिव शंकर शर्मा

उपासनामहिमानं प्रदर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - यो मनुष्यः। अग्नये=ईश्वरप्रीत्यर्थम्। हव्यदातिभिः=हव्यदानैः सह। ददाश=ददाति। तस्य। मर्त्यो रिपुः। मायया+चन=माययापि। न+ईशीत=ईश्वरो न भवति ॥१५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (रिपुः, मर्त्यः) शत्रुर्जनः (मायया, चन) माययापि (तस्य, न, ईशीत) तन्नाभिभवेत् (यः) यो जनः (अग्नये) शूरपत्यर्थम् (हव्यदातिभिः) हव्यपदार्थदानैः (ददाश) परिचरति ॥१५॥