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स त्वं न॑ ऊर्जां पते र॒यिं रा॑स्व सु॒वीर्य॑म् । प्राव॑ नस्तो॒के तन॑ये स॒मत्स्वा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa tvaṁ na ūrjām pate rayiṁ rāsva suvīryam | prāva nas toke tanaye samatsv ā ||

पद पाठ

सः । त्वम् । नः॒ । ऊ॒र्जा॒म् । प॒ते॒ । र॒यिम् । रा॒स्व॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् । प्र । अ॒व॒ । नः॒ । तो॒के । तन॑ये । स॒मत्ऽसु॑ । आ ॥ ८.२३.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:12 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:12


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शिव शंकर शर्मा

उसकी प्रार्थना दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्जांपते) हे अन्नों और बलों के स्वामी ! (सः+त्वम्) वह तू (नः) हम लोगों को (सुवीर्य्यम्) वीरोपेत (रयिम्) अभ्युदय (रास्व) दे (समत्सु) संग्रामों में (नः) हम लोगों के (तोके) पुत्रों (आ) और (तनये) पौत्रों के साथ (प्राव) सहाय कर ॥१२॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर सर्वप्रद है। उससे जो माँगेंगे, वह प्राप्त तो होगा, परन्तु यदि वह पदार्थ हमारे लिये हानिकारी न हो, अतः शुभकर्म में हम निरन्तर रहें, उसी से हमारा कल्याण है ॥१२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्जाम्, पते) हे बलों के स्वामी अग्नि ! (सः, त्वम्) वह आप (नः) हमारे (सुवीर्यम्) सुन्दर पराक्रम से पूर्ण (रयिम्, रास्व) द्रव्य को दें और (नः) हमारे (तोके) पुत्रों में (तनये) पौत्रों में अथवा (समत्सु) संग्रामों में जो रक्षितव्य पदार्थ हैं, उनको (आ, प्राव) सब ओर से सुरक्षित रक्खें ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि बलों के स्वामी योद्धाओं से सदैव प्रार्थना करनी चाहिये कि वह हमारी सन्तानों तथा ऐश्वर्य्य की रक्षा करें अर्थात् जो क्षात्रधर्मप्रधान क्षत्रियवर्ण है, वही ब्राह्मणादि अन्य वर्णों की रक्षा कर सकता है और अन्य वर्णों का काम केवल विद्या तथा धनादिकों का उपार्जन करना है, युद्ध करना नहीं ॥१२॥
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शिव शंकर शर्मा

तस्य प्रार्थनां दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे ऊर्जांपते=अन्नानां बलानाञ्च स्वामिन् ! स त्वम्। नः=अस्मभ्यम्। सुवीर्य्यम्। रयिम्। रास्व=देहि। समत्सु=संग्रामेषु। नोऽस्माकम्। तोके=पुत्रे। तनये+आ= पौत्रे च। आ चार्थः। प्राव=प्ररक्ष ॥१२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्जाम्, पते) हे बलानां पतेऽग्ने ! (सः, त्वम्) तादृशसमर्थस्त्वम् (नः) अस्माकम् (सुवीर्यम्) सुपराक्रमपूर्णम् (रयिम्) द्रव्यम् (रास्व) देहि (नः) अस्माकम् (तोके) पुत्रे (तनये) पौत्रे (समत्सु) संग्रामेषु वा रक्षितव्यम् (आ, प्राव) तत्समन्ताद्रक्ष ॥१२॥