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अग्ने॒ तव॒ त्ये अ॑ज॒रेन्धा॑नासो बृ॒हद्भाः । अश्वा॑ इव॒ वृष॑णस्तविषी॒यव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne tava tye ajarendhānāso bṛhad bhāḥ | aśvā iva vṛṣaṇas taviṣīyavaḥ ||

पद पाठ

अग्ने॑ । तव॑ । त्ये । अ॒ज॒र॒ । इन्धा॑नासः । बृ॒हत् । भाः । अश्वाः॑ऽइव । वृष॑णः । त॒वि॒षी॒ऽयवः॑ ॥ ८.२३.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वाधार (अजर) हे जरारहित नित्य ! (त्ये) तेरे (भाः) प्रकाश (इन्धानासः) सर्वत्र दीप्यमान और (बृहत्) सर्वगत सर्वतो महान् हैं (अश्वाः इव) घोड़े के समान वेगवान् (वृषणः) कामनाओं की वर्षा करनेवाले (तविषीयवः) और परम बलवान् हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर के गुण अनन्त हैं। गुणकीर्तन से वेद का तात्पर्य्य यह है कि उपासक जन भी यथाशक्ति उन गुणों के पात्र बनें। इस स्तुति से ईश्वर को न हर्ष ही और न विस्मय ही होता है ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अजर) हे युवन् (अग्ने) ! शूरपते (तव, ते, बृहद्भाः) आपके अनेकों योद्धा (इन्धानासः) अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित देदीप्यमान (वृषणः, अश्वा इव) अश्वसदृश बलवान् (तविषीयवः) अपने प्रतिपक्षी भट को ढूँढते हुए विचरते हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में यह वर्णन किया है कि वीरविद्यावेत्ता विद्वान् अग्निसमान देदीप्यमान होकर शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित हुए प्रतिदिन प्रतिपक्षी भटों को ढूँढते हैं अर्थात् परमात्मा आदेश करते हैं कि हे न्यायशील युद्धवेत्ता वीरो ! जब तुम अपने लक्ष्य का प्रतिक्षण पालन करोगे, तो तुम ही अपने वेधनरूप प्रतिपक्षी लक्ष्यों के ढूँढ़ने में तत्पर रहोगे और यदि तुम अपनी वीरविद्या का पालन न करोगे, तो तुम्ही अन्य लोगों से अथवा अन्य बधिकों से मृगादिकों के समान ढूँढ़े जाओगे, या यों कहो कि जो पुरुष अपने उद्देश्य को पूर्ण नहीं करता, वह दूसरे के तीक्ष्ण बाणों का लक्ष्य बनता है ॥११॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने=सर्वाधार ! हे अजर ! तव। त्ये=ते। इन्धानासः=इन्धानाः=दीप्यमानाः। बृहद्=बृहन्तः। भाः=भासः सन्ति। अश्वा इव=वेगवन्तः। वृषणः=कामानाम्। सेक्तारः। तविषीयवश्च=परमबलवन्तः। ते सन्ति ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अजर, अग्ने) हे युवन् शूर ! (तव, त्ये, बृहद्भाः) तव ते बहवः “भान्तीति भाः” शूराः (इन्धानासः) दीप्यमानाः (वृषणः) बलवन्तः (अश्वा इव) यथाऽश्वाः (तविषीयवः) प्रतिभटं कामयमानाः सन्ति ॥११॥