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पू॒र्वा॒युषं॑ सु॒हवं॑ पुरु॒स्पृहं॑ भु॒ज्युं वाजे॑षु॒ पूर्व्य॑म् । स॒च॒नाव॑न्तं सुम॒तिभि॑: सोभरे॒ विद्वे॑षसमने॒हस॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pūrvāyuṣaṁ suhavam puruspṛham bhujyuṁ vājeṣu pūrvyam | sacanāvantaṁ sumatibhiḥ sobhare vidveṣasam anehasam ||

पद पाठ

पू॒र्व॒ऽआ॒पुष॑म् । सु॒ऽहव॑म् । पु॒रु॒ऽस्पृह॑म् । भु॒ज्युम् । वाजे॑षु । पूर्व्य॑म् । स॒च॒नाऽव॑न्तम् । सु॒म॒तिऽभिः॑ । सो॒भ॒रे॒ । विऽद्वे॑षसम् । अ॒ने॒हस॑म् ॥ ८.२२.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:22» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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शिव शंकर शर्मा

रथ के विशेषण कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सोभरे) हे विद्वद्वर्ग ! आप जो रथ (पूर्वायुषम्) पूर्ण रीति से पोषण करे या पूर्व पुरुषों की पुष्टि करे, (सुहवम्) जिसका गमनागमन सरल हो, (पुरुस्पृहम्) जिसको बहुत विद्वान् पसन्द करें, (भुज्युम्) जो प्रजाओं का पालक हो, (वाजेषु) संग्रामों में (पूर्व्यम्) पूर्ण या श्रेष्ठ हो, (सचनावन्तम्) जल, स्थल और आकाश तीनों के साथ योग करनेवाला हो अर्थात् तीनों स्थानों में जिसका गमन हो सके, (विद्वेषसम्) शत्रुओं के साथ पूर्ण विद्वेषी हो और (अनेहसम्) जो दूसरों से हिंस्य न हो, ऐसे रथों को (सुमतिभिः) अच्छी बुद्धि लगाकर बनाओ ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो रथ या विमान या नौका आदि सुदृढ़, चिरस्थायी और संग्रामादि कार्य के योग्य हों, वैसी-२ बहुत सी रथ आदि वस्तु सदा विद्वान् बनाया करें ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोभरे) हे विद्वन् ! आप (पूर्वापुषम्) आपत्ति से पहिले ही पोषण करनेवाला (सुहवम्) सुखप्रद आह्वानवाला (पुरुस्पृहम्) अनेक लोगों का ईप्सित (भुज्युम्) सबका पालक (वाजेषु, पूर्व्यम्) संग्रामों में अग्रगामी (सचनावन्तम्) सैनिक समुदाय से आवृत (विद्वेषसम्) शत्रुनिवारक (अनेहसम्) नीतियुक्त होने से निष्पाप, ऐसे रथ की (सुमतिभिः) सुन्दर ज्ञानवाली स्तुतिवाणियों से स्तुति करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे भगवन् ! आप सबका पालन-पोषण करनेवाले, विद्वानों को सुखप्रद, सैनिकबलयुक्त होने से संग्रामों में विजयी, आप नीतिनिपुण और पाप से रहित होने के कारण स्तुतियोग्य हैं, अतएव आप हमारे यज्ञ की सर्व प्रकार से रक्षा करें ॥२॥
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शिव शंकर शर्मा

रथमेव विशिनष्टि।

पदार्थान्वयभाषाः - कीदृशं रथम्−पूर्वायुषम्=पूर्वं पूर्णम् आपुष्णातीति वा, पूर्वान् पूर्वपुरुषान् आपुष्णातीति वा पूर्वेषामापोषकं वा। पुनः सुहवम्=शोभनाह्वानम्। पुरुस्पृहम्=बहुस्पृहणीयम्= बहुकमनीयम्। भुज्युम्=प्रजानां भोक्तारम्=पालकम्। वाजेषु=संग्रामेषु। पूर्व्यम्=श्रेष्ठम्। सचनावन्तम्=सर्वैः सह संगमकारिणम्। विद्वेषसम्= विद्वेष्टारम्। पुनः। अनेहसम्=न कैश्चिदपि हिंस्यमीदृशं रथम्। सोभरे=(सुष्ठु भरति पोषयतीति सोभरिर्विद्वान्) हे विद्वन् ! सुमतिभिः= कल्याणकारिणीभिर्बुद्धिभिः विरचयतु ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोभरे) हे विद्वन् ! (पूर्वापुषम्) आपत्तेः प्रथममेव पोषकम् (सुहवम्) सुखकारकाह्वानम् (पुरुस्पृहम्) पुरुभिः स्पृहणीयम् (भुज्युम्) पालकम् (वाजेषु, पूर्व्यम्) संग्रामेष्वग्रगामिनम् (सचनावन्तम्) सैनिकसमूहवन्तम्, (विद्वेषसम्) शत्रुविद्वेषणम् (अनेहसम्) निष्पापम् ईदृशं रथम् (सुमतिभिः) शोभनस्तुतिभिः स्तुहि ॥२॥