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मनो॑जवसा वृषणा मदच्युता मक्षुंग॒माभि॑रू॒तिभि॑: । आ॒रात्ता॑च्चिद्भूतम॒स्मे अव॑से पू॒र्वीभि॑: पुरुभोजसा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

manojavasā vṛṣaṇā madacyutā makṣuṁgamābhir ūtibhiḥ | ārāttāc cid bhūtam asme avase pūrvībhiḥ purubhojasā ||

पद पाठ

मनः॑ऽजवसा । वृ॒ष॒णा॒ । म॒द॒ऽच्यु॒ता॒ । म॒क्षु॒म्ऽग॒माभिः॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । आ॒रात्ता॑त् । चि॒त् । भू॒त॒म् । अ॒स्मे इति॑ । अव॑से । पू॒र्वीऽभिः॑ । पु॒रु॒ऽभो॒ज॒सा॒ ॥ ८.२२.१६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:22» मन्त्र:16 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:16


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वही विषय आ रहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (मनोजवसा) हे मनोवेग (वृषणा) हे धनादिवर्षिता (मदच्युता) हे आनन्दप्रद (पुरुभोजसा) हे बहुतों को भोजन देनेवाले या पालन करनेवाले राजन् तथा अमात्य आप दोनों ! (मक्षुंगमाभिः) शीघ्रगमन करनेवाली (पूर्वीभिः) सनातनी (ऊतिभिः) रक्षाओं से (अस्मे) हमारी (अवसे) रक्षा के लिये (आरात्तात्+चित्) समीप में ही (भूतम्) होवें। आप हम लोगों के समीप में ही सदा विराजमान रहें ॥१६॥
भावार्थभाषाः - इससे यह दिखलाते हैं कि राज्य की ओर से प्रजारक्षण का प्रबन्ध प्रतिक्षण रहना उचित है ॥१६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मनोजवसा) हे मनसदृश गतिवाले (वृषणा) सुख के वर्षक (मदच्युता) शत्रुओं के गर्व हरनेवाले (पुरुभोजसा) बहुतों के पालक ! आप (मक्षुंगमाभिः) शीघ्रगतिवाली (पूर्वीभिः) अनेक (ऊतिभिः) रक्षाओं सहित (अवसे) हमारी रक्षा के लिये (अस्मे) हमारे (आरात्तात्, चित्) समीप ही (भूतम्) बने रहें ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे शीघ्रगामी नेताओ ! आप सुख देनेवाले, शत्रुओं के गर्व को चूर करनेवाले तथा प्रजाओं का पालन करनेवाले हैं। आप हमारा सदैव स्मरण रखें, किसी देश काल में भी हमसे दृष्टि न उठावें, ताकि हम सुरक्षित हुए प्रजाहितकारक यज्ञ में निर्विघ्न साफल्य प्राप्त कर सकें ॥१६॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदनुवर्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनोजवसा=मनोवेगौ ! हे वृषणा=धनवर्षितारौ। हे मदच्युता=आनन्दवर्षितारौ। हे पुरुभोजसा=बहूनां भौजयितारौ=पालयितारौ। राजानौ ! पूर्वीभिः=पुरातनीभिः। मक्षुंगमाभिः=शीघ्रं गामिनीभिः। ऊतिभिः=रक्षाभिः। अस्मे=अस्माकम्। अवसे=रक्षणाय। आरात्तात् चित्= समीपमेव। भूतम्=भवतम् ॥१६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मनोजवसा) हे मनोवेगौ (वृषणा) सुखस्य वर्षकौ (मदच्युता) शत्रुमदच्यावकौ (पुरुभोजसा) बहूनां पालकौ ! युवाम् (मक्षुंगमाभिः) शीघ्रगामिनीभिः (पूर्वीभिः) अनेकाभिः (ऊतिभिः) रक्षाभिः (अवसे) अस्मद्रक्षणाय (अस्मे) अस्माकम् (आरात्तात्, चित्) समीप एव (भूतम्) भवतम् ॥१६॥