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ओ त्यम॑ह्व॒ आ रथ॑म॒द्या दंसि॑ष्ठमू॒तये॑ । यम॑श्विना सुहवा रुद्रवर्तनी॒ आ सू॒र्यायै॑ त॒स्थथु॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

o tyam ahva ā ratham adyā daṁsiṣṭham ūtaye | yam aśvinā suhavā rudravartanī ā sūryāyai tasthathuḥ ||

पद पाठ

ओ इति॑ । त्यम् । अ॒ह्वे॒ । आ । रथ॑म् । अ॒द्य । दंसि॑ष्ठम् । ऊ॒तये॑ । यम् । अ॒श्वि॒ना॒ । सु॒ऽह॒वा॒ । रु॒द्र॒ऽव॒र्त॒नी॒ इति॑ रुद्रऽवर्तनी । आ । सू॒र्यायै॑ । त॒स्थथुः॑ ॥ ८.२२.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:22» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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शिव शंकर शर्मा

इस सूत्र से राजधर्मों का उपदेश करेंगे।

पदार्थान्वयभाषाः - मैं विद्वान् पुरुष (अद्य) आज शुभदिन में या विपन्न दिन में (दंसिष्ठम्) परमकमनीय या अतिशय शत्रुविनाशक (त्यम्+रथम्) उस सुप्रसिद्ध रमणीय अत्यन्त गमनशील विमान को (ओ) सर्वत्र (ऊतये) रक्षा के लिये (आ+अह्वे) बनाता हूँ या आह्वान करता हूँ, (यम्) जिस रथ के ऊपर (सुहवा) जो सर्वत्र अच्छी तरह से बुलाये जाते हैं या जिनका बुलाना सहज है और (रुद्रवर्तनी) जिनका मार्ग प्रजा की दृष्टि में भयङ्कर प्रतीत होता है, (अश्विनौ) ऐसे हे राजा और अमात्यवर्ग ! आप दोनों (सूर्य्यायै) महाशक्ति के लाभ के लिये (आ+तस्थथुः) बैठेंगे ॥१॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को उचित है कि नूतन-२ रथ और विमान आदि वस्तु का आविष्कार करें, जिनसे राज्यव्यवस्था में सुविधा और शत्रुओं पर आतङ्क जम जाए ॥१॥
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आर्यमुनि

अब इस सूक्त में सेनाधीश तथा न्यायाधीश के कर्मों की प्रशंसा तथा उनका सत्कार करना कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (ओ) हे (अश्विना) सेनाधीश तथा न्यायाधीश ! (अद्य) इस यज्ञारम्भकाल में मैं (ऊतये) रक्षा के लिये (त्यम्) उस (दंसिष्ठम्) शत्रुसंहारक (रथम्) आपके रथ को (आह्वे) आह्वान करता हूँ (यम्) जिस पर (सुहवा) सुखकारक आह्वानवाले (रुद्रवर्तनी) रुद्ररूप से व्यवहार करनेवाले आप (सूर्यायै) अपनी आज्ञावाणी के प्रकाशनार्थ (आतस्थथुः) आस्थित=आरूढ़ होते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में यज्ञकर्त्ता यजमान की ओर से कथन है कि हे शत्रुनाशक न्यायाधीश तथा सेनाधीश ! मैं अपने यज्ञ की रक्षार्थ आपको आह्वान करता हूँ, हे दुष्टों को दण्ड देनेवाले ! आप हमारे यज्ञ को प्राप्त होकर अपनी आज्ञा द्वारा सब प्रकार की रक्षाओं से इस यज्ञ को पूर्ण करें ॥१॥
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शिव शंकर शर्मा

अनेन सूक्तेन राजधर्मान् उपदेक्ष्यति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! अहं विद्वान्। अद्य=अस्मिन् शुभदिने। त्यम्=तं प्रसिद्धम्। दंसिष्ठम्=कमनीयतमम्। रथम्। ओ=समन्ताद्। ऊतये=रक्षायै। आ+अह्वे=आह्वयामि। विरचयामीत्यर्थः। यं रथम्। सुहवा=सुहवौ= शोभनाह्वानौ। रुद्रवर्तनी=भयङ्करमार्गौ। हे अश्विनौ=हे राजानौ ! सूर्य्यायै=महाशक्त्यै= महाशक्तिलाभाय। आ+तस्थथुः=आस्थास्यथः ॥१॥
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आर्यमुनि

सम्प्रति सेनाधीशन्यायाधीशयोः कर्म प्रशंसां सत्क्रियां चाह।

पदार्थान्वयभाषाः - (ओ) हे (अश्विना) सेनाधीशन्यायाधीशौ ! (अद्य) इदानीम् (ऊतये) रक्षायै (त्यम्, दंसिष्ठम्) तं शत्रूणां नाशकम् (रथम्) युवयोर्यानम् (आह्वे) आह्वयामि (यम्) यं रथम् (सुहवा) शोभनाह्वानौ (रुद्रवर्तनी) रुद्ररूपेण वर्तयन्ता युवाम् (सूर्यायै) स्वाज्ञावाक् प्रकाशनाय (आतस्थथुः) आस्थितौ भवतः ॥१॥