वांछित मन्त्र चुनें

व॒यं हि त्वा॒ बन्धु॑मन्तमब॒न्धवो॒ विप्रा॑स इन्द्र येमि॒म । या ते॒ धामा॑नि वृषभ॒ तेभि॒रा ग॑हि॒ विश्वे॑भि॒: सोम॑पीतये ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vayaṁ hi tvā bandhumantam abandhavo viprāsa indra yemima | yā te dhāmāni vṛṣabha tebhir ā gahi viśvebhiḥ somapītaye ||

पद पाठ

व॒यम् । हि । त्वा॒ । बन्धु॑ऽमन्तम् । अ॒ब॒न्धवः॑ । विप्रा॑सः । इ॒न्द्र॒ । ये॒मि॒म । या । ते॒ । धामा॑नि । वृ॒ष॒भ॒ । तेभिः॑ । आ । ग॒हि॒ । विश्वे॑भिः । सोम॑ऽपीतये ॥ ८.२१.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:21» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

वही स्तवनीय है, यह इससे दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे भगवन् ! (वयम्+विप्रासः) मेधावीगण हम (अबन्धवः) बन्धुओं से रहित ही हैं और तू (बन्धुमन्तम्) बन्धुमान् है अर्थात् तेरा जगत् ही बन्धु है, (त्वा+येमिम) उस तुझको आश्रय बनाते हैं, (वृषभ) हे सर्वकामनावर्षक ! (ते+या+धामानि) तेरे जितने संसार हैं, (तेभिः+विश्वेभिः) उन सम्पूर्ण जगतों के साथ विद्यमान (सोमपीतये) सोमादि पदार्थों को कृपादृष्टि से देखने के लिये (आगहि) आ ॥४॥
भावार्थभाषाः - यद्यपि भ्राता, पुत्र, परिवार आदि बन्धु, बान्धव सबके थोड़े बहुत होते हैं, तथापि वास्तविक बन्धु परमात्मा ही है, इस अभिप्राय से यहाँ ‘अबन्धु’ पद आया है ॥४॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमैश्वर्य्यसम्पन्न शूरस्वामिन् ! (अबन्धवः) “बध्नाति सुखेनेति बन्धुः”=जो सुख के साथ जोड़े, वह बन्धु कहलाता है, बन्धुओं से रहित (विप्रासः) विद्यासम्पन्न (वयम्) हम लोग रक्षार्थ (बन्धुमन्तम्) बन्धुओंवाले (त्वा, हि) आपको ही (येमिम्) स्वीकृत करते हैं (वृषभ) हे कामनाओं की वर्षा करनेवाले (या, ते, धामानि) जो आपकी तेजोमय शक्तियाँ हैं (तेभिः, विश्वेभिः) उन सबों के सहित (सोमपीतये) सोमरसपानार्थ (आगहि) आइये ॥४॥
भावार्थभाषाः - सेनापति को उचित है कि जो विद्वान् उसके राष्ट्र में बन्धुओं से पृथक् होकर विद्यावृद्धि करने में लगे हुए हैं, उनकी भले प्रकार रक्षा करे, जिससे विद्या का प्रचार निर्विघ्न हो अर्थात् उसके राष्ट्र में कोई द्विज विद्या से शून्य न रहे ॥४॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

स एव स्तवनीय इति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! अबन्धवः=बन्धुरहिताः। विप्रासः=मेधाविनः। वयं हि। बन्धुमन्तम्=जगद्बन्धुसमेतम्। त्वा=त्वामेव। येमिम=आश्रयामः। हे वृषभ ! ते=तव। या=यानि। धामानि=जगन्ति सन्ति। तेभिर्विश्वेभिः सह। सोमपीतये। आगहि=आगच्छ ॥४॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे सेनापते ! (अबन्धवः) बन्धुरहिताः (विप्रासः) विद्वांसः (वयम्) वयं रक्षार्थिनः (बन्धुमन्तम्) बन्धुसहितम् (त्वा, हि) त्वामेव (येमिम्) नियच्छामः (वृषभ) हे कामनासाधक ! (या, ते, धामानि) यानि तव तेजांसि (तेभिः, विश्वेभिः) तैः सर्वैः (सोमपीतये) सोमपानाय (आगहि) आगच्छ ॥४॥