आ या॑ही॒म इन्द॒वोऽश्व॑पते॒ गोप॑त॒ उर्व॑रापते । सोमं॑ सोमपते पिब ॥
                                    अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
                  
                
                ā yāhīma indavo śvapate gopata urvarāpate | somaṁ somapate piba ||
                  पद पाठ 
                  
                                आ । या॒हि॒ । इ॒मे । इन्द॑वः । अश्व॑ऽपते । गोऽप॑ते । उर्व॑राऽपते । सोम॑म् । सो॒म॒ऽप॒ते॒ । पि॒ब॒ ॥ ८.२१.३
                  ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:21» मन्त्र:3 
                  | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:1» मन्त्र:3 
                  | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:3
                
              
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                    शिव शंकर शर्मा
रक्षा के लिये प्रार्थना करते हैं।
                   पदार्थान्वयभाषाः -  (अश्वपते) हे अश्वों के स्वामी ! (गोपते) हे गवादि पशुओं के स्वामी ! हे (उर्वरापते) क्षेत्रपते ! (सोमपते) हे सोमादि लताओं के अधिपति ! (इमे+इन्दवः) ये सोमादि लताएँ आप ही की हैं। (आयाहि) उनकी रक्षा के लिये आप आवें और (सोमम्+पिब) सोमादि पदार्थों को कृपादृष्टि से देखें वा बचावें ॥३॥              
              
              
                            
                  भावार्थभाषाः -  उर्वरा=उपजाऊ भूमि का नाम उर्वरा है। परमेश्वर हमारे पशुओं, खेतों और लताओं का भी रक्षक है ॥३॥              
              
              
                            
              
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                    आर्यमुनि
                   पदार्थान्वयभाषाः -  (अश्वपते) हे अपने मण्डल में अश्वों की वृद्धि करनेवाले (गोपते) तथा गौओं की वृद्धि करनेवाले (उर्वरापते) सर्व प्रकार के सस्य से पूर्ण पृथ्वी के सम्पादक (सोमपते) सोमयाग के रक्षक सेनापति ! (इमे, इन्दवः) ये दिव्य आपके उपभोगयोग्य पदार्थ हम लोगों ने सिद्ध किये हैं, इससे (आयाहि) उनका सेवन करने के लिये आप आवें और (सोमम्, पिब) सोमरस का पान करें ॥३॥              
              
              
                            
                  भावार्थभाषाः -  इस मन्त्र में सेनापति का सत्कार कथन किया है कि जब वह सेनाध्यक्ष अपनी रक्षाओं से पृथ्वी को गौ, अश्वपूर्ण तथा सस्यशालिनी कर देता है, तब सब प्रजाजन बड़े हर्षपूर्वक सत्कार करते हुए उसको आह्वान करके सम्मानित करते हैं अर्थात् सोमरसादि उत्तमोत्तम विविध पदार्थों से उसका सत्कार करते हुए अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं, ताकि उनके सोमयाग * में कोई विघ्न न हो ॥३॥ *चारों वेदों में सोम नाम से जिन-२ मन्त्रों में परमात्मा की स्तुति की गई है, उन मन्त्रों से जो याग किया जाता है अथवा सोमरसपानार्थ जो याग किया जाता है, उसका नाम ‘सोमयाग’ है॥              
              
              
                            
              
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                    शिव शंकर शर्मा
रक्षायै प्रार्थयते।
                   पदार्थान्वयभाषाः -  हे अश्वपते ! हे गोपते ! हे उर्वरापते ! सर्वसस्याढ्या भूमिरुर्वरा। हे सोमपते=सोमानां सोमलतादीनां स्वामिन्। इमे+इन्दवः=इमे दृश्यमानाः सोमादिपदार्थास्तवैव सन्ति। तानायाहि। सोमम्= सोमादि वस्तु। पिब=रक्ष ॥३॥              
              
              
              
              
                            
              
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                    आर्यमुनि
                   पदार्थान्वयभाषाः -  (अश्वपते) हे स्वराष्ट्रे अश्वानां वर्धक (गोपते) गवां वर्द्धयितः (उर्वरापते) सर्वविध सस्यसम्पन्न भूमेः सम्पादक (सोमपते) सोमयागाधीश्वर सेनापते ! (इमे, इन्दवः) इमे दिव्यास्ते भोगार्हपदार्थाः मया सम्पादिताः अतः (आयाहि) सेवनाय तेषामायाहि (सोमम्, पिब) सोमरसं चागत्य पिब ॥३॥              
              
              
              
              
                            
              
            
                  