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मा ते॑ अमा॒जुरो॑ यथा मू॒रास॑ इन्द्र स॒ख्ये त्वाव॑तः । नि ष॑दाम॒ सचा॑ सु॒ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā te amājuro yathā mūrāsa indra sakhye tvāvataḥ | ni ṣadāma sacā sute ||

पद पाठ

मा । ते॒ । अ॒मा॒ऽजुरः॑ । य॒था॒ । मू॒रासः॑ । इ॒न्द्र॒ । स॒ख्ये । त्वाऽव॑तः । नि । स॒दा॒म॒ । सचा॑ । सु॒ते ॥ ८.२१.१५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:21» मन्त्र:15 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:15


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शिव शंकर शर्मा

इससे आशीर्वाद माँगते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे सर्वद्रष्टा ईश ! (त्वावतः+सख्ये) तेरे सदृश देव की मित्रता में (मूरासः) मूढ़जन (यथा) जैसे (अमाजुरः) अपने गृह पर ही रहकर व्यसनों में फँस रोगादिकों से पीड़ित हो नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं (तथा) वैसे (ते) तेरे उपासक हम लोग न होवें, जिसलिये हम उपासक (सुते+सचा) यज्ञ के साथ-२ (नि+सदाम) बैठते हैं ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हम लोग आलसी और व्यर्थ समय न बितावें, किन्तु ईश्वरीय आज्ञा का पालन करते हुए सदा शुभकर्म में प्रवृत्त रहें ॥१५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे शूरस्वामिन् ! (त्वावतः) आप जैसे रक्षक के (सख्ये) मैत्रीभाव में (ते) आपके होते हुए हम लोग (यथा, मूरासः) मूर्खों के समान (मा, अमाजुरः) सहसा बलहीन न हों किन्तु (सुते) आपके हव्य पदार्थों को निष्पादन करते हुए (सचा) आपके साथ (निषदाम) बने रहें ॥१५॥
भावार्थभाषाः - सेनापति को उचित है कि अपने अधीन राष्ट्र को किसी प्रकार की भी शक्तियों से हीन न होने दे, जिससे वह अनेक बलसाध्य कर्मों को स्वयं ही करते हुए अपना सहायक हो सके, तात्पर्य्य यह है कि जिस सेनापति का राष्ट्र सहायक होता है, वही शक्तिसम्पन्न होकर कृतकार्य्य होता है, अन्य नहीं ॥१५॥
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शिव शंकर शर्मा

आशिषं याचते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! त्वावतः=त्वत्सदृशस्य देवस्य। सख्ये। मूरासः=मूढा जनाः। यथा। अमाजुरः। अमा=गृहेण सह जीर्णा भवन्ति। तथा। ते=तव। स्वभूता वयम्। मा भूम। यतो वयम्। सचा=सह। सुते=यज्ञे। निषदाम=निषीदाम=उपविशामः ॥१५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे सेनापते ! (त्वावतः) त्वादृशः (सख्ये) सख्ये वर्तमाना वयम् (ते) त्वदीयाः सन्तः (यथा, (मूरासः) यथामूढास्तथा (मा, अमाजुरः) सहसा जीर्णा मा भूम किन्तु (सुते) त्वदीये हव्ये सिद्धे सति (सचा) सह (निषदाम) निषण्णा भवेम ॥१५॥