प्रति॑ वो वृषदञ्जयो॒ वृष्णे॒ शर्धा॑य॒ मारु॑ताय भरध्वम् । ह॒व्या वृष॑प्रयाव्णे ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
prati vo vṛṣadañjayo vṛṣṇe śardhāya mārutāya bharadhvam | havyā vṛṣaprayāvṇe ||
पद पाठ
प्रति॑ । वः॒ । वृ॒ष॒त्ऽअ॒ञ्ज॒यः॒ । वृष्णे॑ । शर्धा॑य । मारु॑ताय । भ॒र॒ध्व॒म् । ह॒व्या । वृष॑ऽप्रयाव्णे ॥ ८.२०.९
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:20» मन्त्र:9
| अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:37» मन्त्र:4
| मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:9
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शिव शंकर शर्मा
पुनः वही विषय आ रहा है।
पदार्थान्वयभाषाः - (वृषदञ्जयः) हे शोभनाचारयुक्त प्रजाजनों ! (वः) आप लोग (मारुताय) उत्तम सेनाजनों के लिये (हव्यानि) विविध द्रव्य विविध खाद्यपदार्थ (प्रतिभरध्वम्) रक्षा के बदले में दिया करें। (वृष्णे) जो मरुद्गण रक्षा और धनादिकों की वर्षा करते हैं (शर्धाय) जो आप लोगों के बलस्वरूप हैं और (वृषप्रयाव्णे) जिनके नायक वृषवत् बलिष्ठ और देशरक्षक हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - भगवान् उपदेश देते हैं कि सेना देश हितकारिणी हो और उस का भरण-पोषण प्रजाधीन हो ॥९॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वृषदञ्जयः) हे कामनाप्रद योद्धाओं को बुलानेवाले मनुष्यो ! (वः) तुम सब (वृष्णे) कामनाओं की वर्षा करनेवाले (मारुताय) योद्धाओं का (वृषप्रयाव्णे) बलिष्ठ सैनिकवाली (शर्धाय) सेना के लिये (हव्या) उसके दातव्य भागों को (प्रतिभरध्वम्) प्रतिहरण करते रहो अर्थात् उन्हें देते रहो ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे प्रजाजनो ! तुम अपनी कामनाओं को पूर्ण करनेवाले योद्धाओं को बुलाकर सदैव उनका सत्कार करो, उनसे शूरवीरतादि गुण धारण करके बलवान् होओ और उनके दातव्यभाग को कभी मत रोको, सदैव देते रहो ॥९॥ तात्पर्य्य यह है कि जो जनता योद्धाओं के सैनिक विभागों का यथायोग्य मान करती हुई उनसे धीर वीरतादि गुणों की शिक्षा प्राप्त कर अनुष्ठान करती है, वह सदैव सुखी रहती है ॥
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शिव शंकर शर्मा
पुनस्तदेवानुवर्त्तते।
पदार्थान्वयभाषाः - हे वृषदञ्जयः। अञ्जिर्गतिः। वृषन् अञ्जिर्येषां ते वृषदञ्जयः। शोभनगतय इत्यर्थः। वः=यूयम्। छान्दसोऽयं प्रयोगः। वृषप्रयाव्णे। वृषा=वृषवद् बलिष्ठः। प्रयावा=अग्रसरो नायको यस्य तस्मै वृषप्रयाव्णे। पुनः। वृष्णे=रक्षायै धनादिकानां च वर्षयित्रे। पुनः। शर्धाय=बलरूपाय। मारुताय=मरुद्गणाय। हव्यानि=भोजनादीनि वस्तूनि प्रति। भरध्वम् ॥९॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वृषदञ्जयः) हे वृषतां मरुतामाह्वातारः ! (वः) यूयम् (वृष्णे) वर्षित्रे (मारुताय) मरुतां समूहाय (वृषप्रयाव्णे) वर्षितृसैनिकयातृकाय (शर्धाय) बलाय (हव्या) तदीयभागान् (प्रतिभरध्वम्) प्रतिहरध्वम् ॥९॥