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ज्येष्ठे॑न सोत॒रिन्द्रा॑य॒ सोमं॑ वी॒राय॑ श॒क्राय॑ । भरा॒ पिब॒न्नर्या॑य ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

jyeṣṭhena sotar indrāya somaṁ vīrāya śakrāya | bharā piban naryāya ||

पद पाठ

ज्येष्ठे॑न । सो॒तः॒ । इन्द्रा॑य । सोम॑म् । वी॒राय॑ । श॒क्राय॑ । भर॑ । पिब॑त् । नर्या॑य ॥ ८.२.२३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:2» मन्त्र:23 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:23


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शिव शंकर शर्मा

परमदेव को सब समर्पण करें, यह इससे दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सोतः) हे शुभकर्मकारी उपासकगण ! (वीराय) परमवीर महावीर (शक्राय) सर्वशक्तिमान् तथा (नर्य्याय) मनुष्यहितकारी (इन्द्राय) इन्द्रवाच्य परमदेव को (ज्येष्ठेन) इन्द्रियों में सर्वश्रेष्ठ ज्येष्ठ मन से (सोमम्) निज-२ सब ही वस्तु (भर) समर्पित करो। ऐसे भाव से भावित होकर उसको समर्पित करो, जिससे कि (पिबत्) वह उस उस पदार्थ पर अनुग्रह करे। इति ॥२३॥
भावार्थभाषाः - वही जगदीश महावीर है, क्योंकि वह सब कुछ कर सकता है, अतः वीरत्व की प्राप्ति के लिये उसी की उपासना करो। उसकी आज्ञा से ब्रह्मचर्य्य और व्रतों को करके वीर हो, लोगों में उपकार करो और मनोयोग से परार्थ करते हुए तुम परमगुरु में चित्त रक्खो ॥२३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोतः) हे सोमरसोत्पादक ! (वीराय) शत्रुओं का विशेषतया नाश करनेवाले (शक्राय) समर्थ (नर्याय) मनुष्यों के हितकारक (इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये (ज्येष्ठेन) सबसे पूर्वभाग के (सोमं) सोमरस को (भर) आहरण करो, जिसको वह (पिबत्) पान करे=पीवे ॥२३॥
भावार्थभाषाः - सोमरस बनानेवाले को “सोता” कहते हैं, याज्ञिक लोगों का कथन है कि हे सोता ! शत्रुओं के नाशक, सब कामों के पूर्ण करने में समर्थ तथा सबके हितकारक कर्मयोगी के लिये सर्वोत्तम सोमरस भेट करो, जिसको वह पानकर प्रसन्न हुए सद्गुणों की शिक्षा द्वारा हमको अभ्युदय सम्पन्न करे ॥२३॥
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शिव शंकर शर्मा

सर्वं परमात्मने समर्पणीयमिति प्रदर्शयत्यनया।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सोतः=सुनोति शुभकर्माणि करोतीति सोता तत्सम्बोधने। हे शुभकर्मपरायण ! ज्येष्ठेन=श्रेष्ठेन मनसा। सोमम्=सर्वं स्वकीयं वस्तु। इन्द्राय=परमात्मने। भर=अर्पय। कीदृशाय। वीराय=महावीराय जगदाधारकत्वात्। पुनः। शक्राय=सर्वं कर्त्तुं शक्नोतीति शक्रस्तस्मै। पुनः। नर्य्याय=नरहिताय। तस्मायेव सर्वभावेन सर्वं समर्पय। येन तं तं सोमं स खलु। पिबद्=अनुगृह्णीयात् ॥२३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोतः) हे सोमरसोत्पादक ! (वीराय) विशेषेण शत्रूणां नाशकाय (शक्राय) समर्थाय (नर्याय) नरेभ्यो हिताय (इन्द्राय) कर्मयोगिने (ज्येष्ठेन) सर्वेभ्यः पूर्वेण भागेन (सोमं) सोमरसं (भर) आहर तं च सः (पिबत्) पिबेत् ॥२३॥