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स्व॒ग्नयो॑ वो अ॒ग्निभि॒: स्याम॑ सूनो सहस ऊर्जां पते । सु॒वीर॒स्त्वम॑स्म॒युः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svagnayo vo agnibhiḥ syāma sūno sahasa ūrjām pate | suvīras tvam asmayuḥ ||

पद पाठ

सु॒ऽअ॒ग्नयः॑ । वः॒ । अ॒ग्निऽभिः॑ । स्याम॑ । सू॒नो॒ इति॑ । स॒ह॒सः॒ । ऊ॒र्जा॒म् । प॒ते॒ । सु॒ऽवीरः॑ । त्वम् । अ॒स्म॒ऽयुः ॥ ८.१९.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:19» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:30» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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शिव शंकर शर्मा

अग्निहोत्र को दिखाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सहसः) हे जगत् के (सूनो) उत्पादक हे (ऊर्जाम्) बलवान् सूर्य्यादिकों का या बलों का (पते) स्वामिन् ! (वः) आपके (अग्निभिः) अग्निहोत्रादि कर्मों से (स्वग्नयः) अच्छे अग्निहोत्रादि शुभकर्म करनेवाले हम सब (स्याम) होवें। हे भगवन् ! वास्तव में (त्वम्) आप ही (सुवीरः) महावीर हैं, आप (अस्मयुः) हम लोगों की कामना करें, हमारी ओर देखें ॥७॥
भावार्थभाषाः - अग्निहोत्रादि कर्म मनुष्य को पवित्र करनेवाले हैं, अतः उनका सेवन नित्य कर्त्तव्य है ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सहसः, सूनो) हे बल से उत्पाद्य (ऊर्जाम्, पते) बलों के स्वामी परमात्मन् ! (वः, अग्निभिः) आपके विद्वानों द्वारा हम लोग (स्वग्नयः) शोभन रीति से आपके उपासक (स्याम) हों (सुवीरः, त्वम्) सुन्दर वीरोंवाले आप (अस्मयुः) हमको चाहनेवाले हों ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपासक को आत्मरक्षा के लिये दो प्रकार के सहायकों की ईश्वर से प्रार्थना करना कथन की । एक तो अनेक विद्याकुशल विविध विद्वान् और दूसरे संग्रामकुशल वीर, इन दोनों की वृद्धि जिस देश में होती है, वही देश सर्वथा सुरक्षित रहता है, इसलिये सब प्रजाजनों को उचित है कि अपनी रक्षा के लिये उक्त दोनों प्रकार के मनुष्यों के लिये परमात्मा से प्रार्थना करें, ताकि सब सुरक्षित रहकर धार्मिक तथा सामाजिक उन्नति करते हुए ऐश्वर्यसम्पन्न हों ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा

अग्निहोत्रं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सहसः सूनो ! सहसा बलेन जायते उत्पद्यते इति सहो जगत्। तस्य सूनो=सवितः=जनयितः। सूयते उत्पादयति यः स सूनुर्जनयिता। विचित्रा हि वैदिकप्रयोगाः। हे ऊर्जाम्=बलवतां सूर्य्यादीनाम्। बलानां वा पते=पालक ! वः=तव। अत्र वचनव्यत्ययः। अग्निभिः=अग्निहोत्रादिकर्मभिः। वयं स्वग्नयः =शोभनाग्निहोत्रादिकर्माणः। स्याम=भवेम। हे भगवन् ! सुवीरो बलवतां बलिष्ठस्त्वम्। अस्मयुः=अस्मान् कामयमानो भव ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सहसः, सूनो) हे बलेनोत्पाद्य (ऊर्जाम्, पते) बलानां पते ! (वः, अग्निभिः) युष्माकं विद्वद्भिः वयम् (स्वग्नयः) सुष्ठु अग्निमन्तः (स्याम) भवेम (सुवीरः, त्वम्) सुवीरवान् त्वं च (अस्मयुः) अस्मदिच्छावांश्च स्याः ॥७॥