पदार्थान्वयभाषाः - (पौरुकुत्स्यः) पुरुकुत्स=विविधशस्त्रोंवाले योद्धाओं में तेजरूप से विद्यमान “कुत्स इति वज्रनामसु पठितम्” निरु० २।२०। (मंहिष्ठः) सबसे महान् (सत्पतिः) सज्जनों का पालक (त्रसदस्युः) दस्युओं को त्रास देनेवाला (अर्यः) प्राप्तव्य परमात्मा ने (मे) मेरे उपभोगाय (वधूनाम्) सहनशील नदी आदि पदार्थों के, “वधू” यह शब्द नदीनामों में पढ़ा है, निरु० १।१३। (पञ्चाशतम्) पचासों संख्यावाले समुदाय को (अदात्) उत्पन्न किया ॥३६॥
भावार्थभाषाः - वह परमात्मा शूरवीरों में तेजोरूप से विद्यमान होकर शत्रुओं के नाश द्वारा सज्जनों का पालन करता है, उसी ने अपनी विचित्र शक्ति से नदियों द्वारा सर्वत्र जल पहुँचाया और उसी ने घृतादि वहनशील पदार्थों को उत्पन्न करके प्रजावर्ग को पुष्ट तथा सुखी किया, इत्यादि अनेकानेक पदार्थ जिनका उपभोग करके मनुष्य सुखी होते हैं, सब परमात्मा की रचना है, अतएव मनुष्यमात्र का कर्तव्य है कि उसकी महिमा का अनुभव करते हुए उसके आज्ञापालक हों, ताकि वह प्रसन्न होकर हमें प्रभूत सुखकारक पदार्थ प्राप्त कराए ॥३६॥