वांछित मन्त्र चुनें

ईळे॑ गि॒रा मनु॑र्हितं॒ यं दे॒वा दू॒तम॑र॒तिं न्ये॑रि॒रे । यजि॑ष्ठं हव्य॒वाह॑नम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

īḻe girā manurhitaṁ yaṁ devā dūtam aratiṁ nyerire | yajiṣṭhaṁ havyavāhanam ||

पद पाठ

इळे॑ । गि॒रा । मनुः॑ऽहितम् । यम् । दे॒वाः । दू॒तम् । अ॒र॒तिम् । नि॒ऽए॒रि॒रे । यजि॑ष्ठम् । ह॒व्य॒ऽवाह॑नम् ॥ ८.१९.२१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:19» मन्त्र:21 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:33» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:21


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

स्तुति का आरम्भ करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (गिरा) गुरुजनों की व्याख्यारूप वाणी से हम लोग (मनुर्हितम्) मनुष्यहितकारी उस अग्निदेव के (ईडे) गुणों का अध्ययन करें (यम्) जिस अग्नि को (देवाः) विद्वान् जन (दूतम्) देवदूत (अरतिम्) धनस्वामी (यजिष्ठम्) परमदाता और (हव्यवाहनम्) आहुत द्रव्यों को पहुँचानेवाला (न्येरिरे) मानते हैं ॥२१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य को उचित है कि अग्निहोत्रादि कर्म करे और उससे क्या लाभ होता है, उसका और अग्निविद्या का वर्णन लोगों को सुनावें ॥२१॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मनुर्हितम्) यज्ञ करनेवाले मनुष्यों से धारण किये गये उस परमात्मा का (गिरा, ईडे) स्तुतिवाणियों से स्तवन करते हैं (यम्) जिस (दूतम्) शत्रु के उपतापक अथवा शीघ्रगतिवाले (अरतिम्) प्राप्तव्य (यजिष्ठम्) ब्रह्माण्डरूप यज्ञ के कर्त्ता (हव्यवाहनम्) हव्यपदार्थों को प्राप्त करानेवाले परमात्मा को (देवाः, न्येरिरे) देव=दिव्यगुणसम्पन्न प्राणी प्राप्त करते हैं ॥२१॥
भावार्थभाषाः - जो परमात्मा ब्रह्माण्डरूप महान् यज्ञ का कर्ता तथा ब्रह्माण्डगत विविध पदार्थों को यथायोग्य यथाभाग सब प्रजाओं को वितीर्ण करनेवाला तथा जो दिव्य विद्वानों द्वारा सेवित है, वही सर्वथा प्राप्तव्य है और ध्यान करने पर शीघ्र ही ध्यानविषय हो जाना उसकी शीघ्रगति कही जाती है। वास्तव में सर्वव्यापक की गति नहीं हो सकती। ऐसे महान् तथा सर्वव्यापक परमात्मा को देव=योगसम्पन्न विद्वान् पुरुष ही प्राप्त कर सकते हैं, अन्य नहीं ॥२१॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

स्तुतिमारभते।

पदार्थान्वयभाषाः - गिरा=गुरूणां व्याख्या तया वाण्या। मनुर्हितम्=मनुष्याणां हितकरम्। अग्निम्। ईडे=स्तौमि। यमग्निम्। देवाः=विद्वांसो जनाः। दूतम्=देवदूतम्। अरतिम्=स्वामिनम्। यजिष्ठं हव्यवाहनम्= हव्यानां हविषां वोढारं च। न्येरिरे=मन्यन्ते ॥२१॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मनुर्हितम्) मनुष्यैः यजमानैर्धृतम् तम् (गिरा) वाचा (ईडे) स्तौमि (यम्) यं परमात्मानम् (दूतम्) शत्रूणां दवितारम् (अरतिम्) प्राप्तव्यम् (यजिष्ठम्) यष्टृतमम् (हव्यवाहनम्) हव्यानां धारकम् (देवाः, न्येरिरे) देवाः प्राप्नुवन्ति ॥२१॥